इन संसाधनों की है कमी जानकारों की माने तो आपदा प्रबंधन दल के पास रस्सियां, सर्चलाइट, लाइफ जैकेट्स, बेलचे, हैलमेट आदि हैं। लेकिन इनके अतिरिक्त बड़ी आपदा या बड़ी दुर्घटना होने पर लोहे, लकड़ी, आरसीसी आदि को काटने के लिए बड़े कटर्स नहीं हं।
इसके साथ बारीक रोप या रस्सी, बचाव दल के व्यक्ति को गहरे गड्ढे में उतारने वाला झूला (मैन हार्नेस), ब्रीथिंग सैट आदि की कमी है। इसी प्रकार बाढ़ के हालात होने पर नाव के लिए भी एनडीआरएफ के भरोसे हैं। आपदा प्रबंधन के लिए त्रिस्तरीय व्यवस्था कलक्ट्रेट परिसर में आपदा प्रबंधन सहायता बाढ़ नियंत्रण कक्ष स्थापित है। जो 24 घंटे चालू है। आपदा प्रबंधन की व्यवस्था तीन स्तर पर है। सिंचाई विभाग में भी 15 जून से नियंत्रण कक्ष स्थापित हैं। जो आपदा प्रबंधन व जिला प्रशासन को बारिश के दौरान जलाशयों की भराव की जानकारी रोजाना देता है।
फस्र्ट रेस्पोंस टीम : नागरिक सुरक्षा दल में 24 गोताखोर व ड्राइवर हैं। सिविल डिफेंस या नागरिक सुरक्षा में डिस्ट्रिक्ट क्विक रेस्पोंस टीम और इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर होता है।
सैकंड रेस्पोंस टीम :
स्टेट डिजास्टर रेस्पोंस फोर्स एसडीआरएफ में 75 सदस्य होते हैं। 25-25 सदस्यों की 8-8 घंटे ड्यूटी लगाई जाती है।
थर्ड रेस्पोंस टीम : जब कोई बड़ी आपदा है और वहां जीवित लोग फंसे हुए हो तो नेशनल डिजास्टर टीम के 150 सदस्य होते हैं। ये तीन पारियों में ड्यूटी अंजाम देते हैं। इनके पास नाव आदि की व्यवस्था भी होती है।
तीन स्तरीय आपदा प्रबंधन के सदस्य तैनात हैं। मौजूद व उपलब्ध संसाधनों के आधार पर आपदा से निपटने में सक्षम हैं। हाल ही में ब्यावर में हुए गैस सिलेंडर दुखांतिका मे भी अजमेर से गई टीम के कार्य को सराहा गया था।
-विजय यादव, डिप्टी चीफ वार्डन ( सर्च एंड रेस्क्यू), आपदा प्रबंधन कार्यालय, अजमेर