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Valentine Day special..अजमेर रहा है कुमार विश्वास और मंजु का लवर्स पॉइन्ट

locationअजमेरPublished: Feb 10, 2019 02:00:03 pm

Submitted by:

raktim tiwari

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kumar vishvas love story

kumar vishvas love story

रक्तिम तिवारी/अजमेर.

यूं तो अजमेर अरावली की सुंदर वादियों, दिलकश मौसम और कुदरती नजारों के लिए बेहद मशहूर है। यहां की आबोहवा और यादों के झरोखे में कई रोचक ‘कहानियां’ छुपी है। पृथ्वीराज चौहान-संयोगिता, मुगल बादशाहर जहांगीर और नूरजहां से लेकर ढोला-मारू की बेपनाह मोहब्बत के किस्से काफी चर्चित रहे हैं। इनमें आम आदमी पार्टी के नेता, कवि और लेखक कुमार विश्वास भी शामिल हैं। यहीं विश्वास और मंजु की मोहब्बत की शुरुआत होकर विवाह बंधन में बंधी थी।
उत्तर प्रदेश के पिलखुआ में 10 फरवरी 1970 को पैदा हुए कुमार विश्वास बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। अपनी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद विश्वास ने 1994 में राजस्थान में हिंदी के कॉलेज व्याख्यता नियुक्त हुए। उनकी पोस्टिंग भरतपुर-दौसा क्षेत्र में रही।
यूं हुई मंजु से मुलाकात
अजमेर के सिविल-लाइंस भौपों का बाड़ा में रहने वाली मंजु भी 1994-95 में कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हुई। मंजु और विश्वास की मुलाकात हिंदी से जुड़े कार्यक्रमों में हुई। विश्वास ने मंजु के लिए कविताएं लिखने की शुरुआत की। यह कविताएं श्रंगार रस से जुड़ी होती थीं। इन्हीं कविताओं ने मंजु को प्रभावित किया।
अजमेर बना लवर्स पॉइन्ट
मंजु का अजमेर में घर होने से कुमार विश्वास भी उनसे मुलाकात करने यहां पहुंचने लगे। आनासागर झील, बारादरी, फायसागर झील, पुष्कर घाटी और बजरंगगढ़ मंदिर में दोनों कई बार मिले। धीरे-धीरे प्रेम कहानी आगे बढऩे लगी। यह बातें दोनों के परिवार तक भी पहुंची।
बंधे विवाह बंधन में
विश्वास और मंजु की प्रेम कहानी के घरों तक पहुंचे। घर वालों की रजामंदी से दोनों विवाह बंधन में बंधे। अजमेर को कुमार विश्वास का ससुराल बनने का गौरव हासिल हुआ।
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पायल का घुंघरू से बना घूघरा गांव

चंदरवदायी रचित पृथ्वीराज रासो और सुरजन चरित महाकाव्य की मानें तो कन्नौज के राजा जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर में उसने पृथ्वीराज को छोडकऱ तत्कालीन आर्यावर्त (भारत) के सभी राजाओं को निमंत्रण दिया। साथ ही द्वारपाल के रूप में उसकी मूर्ति महल में लगवा दी। संयोगिता ने स्वयंवर में द्वारपाल बने पृथ्वीराज के गले में वरमाला डाल दी। वहां पहले से बैठा पृथ्वीराज संयोगिता को घोड़े पर उठाकर दिल्ली ले उड़ा। दिल्ली से पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर अजमेर की तरफ बढ़ा। अजमेर से महज चार-पांच मील दूर संयोगिता की पायल का घुंघरू निकलकर गिर पड़ा। घुंघरू मिला या नहीं लेकिन कालान्तर में गांव को जन्म जरूर दे गया। इतिहास और आधुनिक दौर में इसे ‘घूघरा’ गांव कहा जाता है।
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