गांव की पूर्व वार्ड पंच गीता जाखड़ ने बताया कि उनके तीन भैंस और एक गाय है। आधा दूध डेयरी में सप्लाई हो जाता है लेकिन आधा दूध बच रहा है। जाखड़ ने कहा कि घर में इतने लोग नहीं है कि बचा हुआ दूध काम आ जाए, गांव में सबके घर में गाय-भैंस है। ऐसे में दूध को नाली में बहाने से तो अच्छा है कि गाय-भैंस को पिला दिया जाए।
मां के हाथ की रोटी का मिल रहा स्वाद लॉकडाउन में ग्रामीण भले ही घरों में ही रहने को मजबूर हैं, खेती-बाड़ी सहित अन्य काम-काज पर असर पड़ा है लेकिन फिर भी वे खुश नजर आ रहे हैं। बुजुर्ग मां-बाप इसलिए खुश हैं कि शहर में काम करने वाले बेटे पिछले कई दिनों से उनके पास हैं तो बेटे इसलिए खुश हैं कि गांव की आबोहवा और मां के हाथ की रोटी खाने को मिल रही है। अजमेर में प्राइवेट जॉब करने वाले रमेश और मुकेश लॉकडाउन हुआ तब से गांव में ही अपनी बुजुर्ग मां के पास रह रहे हैं। बड़े बेटे गोपाल के साथ गांव में रहने वाली मां 75 वर्षीय कमला ने गेहंू साफ करते हुआ कहा कि दोनों बेटे जिस भी परिस्थिति के कारण आए हों लेकिन पिछले कई दिनों से मेरी आंखों के सामने हैं। रमेश और मुकेश ने कहा कि अजमेर में एक कमरे में बंद होकर रह जाते। यहां इतना बड़ा चौक है, आराम से टहल भी सकते हैं और मां के हाथ की रोटी और उनका दुलार भी मिल रहा है।
सजग भी हैं ग्रामीण कोरोना को लेकर ग्रामीण इतने सजग हैं कि पत्रिका टीम ने जैसे ही गांव में प्रवेश किया, कुछ महिलाओं ने घेर लिया और सवाल किया कि कहां से और क्यों आए हो। परिचय देने के बाद उन्होंने बताया कि वे गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति अभी आने नहीं दे रहे हैं। ग्रामीणों को भी यह हिदायत दी गई है कि वे अपने किसी रिश्तेदार को यहां आने के लिए नहीं कहें।