पानी के लिए अब घर-घर नल कनेक्शन है। ट्यूबवैल चौबीस घंटे पानी उगल रहे हैं। फोन करो घर बैठे पानी के टैंकर पहुंच जाएंगे। तैरने के लिए अब तरणताल बन गए। तालाब व बांध में तैरने कौन जाए। इसके चलते जल स्त्रोत दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं। बारिश की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार मानी जा सकती है। जल ग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण से भी जलाशयों में पानी नहीं पहुंच रहा।
अब वो बात कहां… सरवाड़ उपखंड के एक दर्जन से अधिक तालाब, बांध व नाडिय़ां पानी भराव को तरस रहे हैं। सरवाड़ में दो-तीन दशक पहले १५० से अधिक कुओं, कई तालाब, तलाई, नहर, कुंड, बावडिय़ां व कई घरों में मीठे पानी की बेरियां दिखाई पड़ती है। पुरखों ने इनके निर्माण के लिए कभी सरकार के आगे हाथ नही पसारे। लोगों में इनके निर्माण की होड़ सी लगी रहती थी।
दुर्भाग्य से आधुनिक पीढ़ी पुरखों की इस अनमोल विरासत को अक्षुण्य नहीं रख पा रही है। यहां घरों में जब नल नही पहुंचा था, तब तक सरवाड़ में मीठे पानी की कोई कमी नही थी। लोगों को इन पेयजल स्रोतों की बड़ी कद्र व फि क्र थी। यही वजह रही कि सालों तक यहां के वाशिन्दों को कभी पेयजल संकट का सामना नहीं करना पड़ा। चाहे कितना भी सूखा क्यों नही पड़ा। यह पेयजल स्रोत कभी रीते नहीं हुए। आज से 15-20 साल पहले घरों में नल क्या आए, ऐसा लगा कि जैसे इन पेयजल स्रोतों की अब कोई जरूरत ही नही रही। ज्योंं-ज्यों नल घरों की आवश्यकता बनने लगे, त्यों-त्यों पेयजल के ये पारंपरिक स्रोत नजरों से ओझल होते चले गए।
सूर्य तलाई का बिसराया महत्व
सूर्य तलाई का बिसराया महत्व
सरवाड़ के पश्चिमी छोर पर जड़ाना मार्ग स्थित सूर्य तलाई यहां के लोगों के लिए ऐसा ही पेयजल स्रोत थी, जहां लोग प्रतिदिन नहाने के लिए तो आते ही थे, साथ ही तलाई के चारों ओर बने अलग-अलग समाजों की बेरियों से पीने के लिए पानी भी जुटाते थे। किशनगढ़ राठौड़वंशीय राजाओं के शासनकाल में निर्मित सूर्य तलाई अपनी विशिष्ट गोलाकार कटोरे के आकार में बड़ी ही खूबसूरत दिखाई पड़ती है।
बुजुर्ग बताते हैं कि यहां तैरने के आनंद को तो वे आज भी नहीं भूले हैं। तलाई के बाहर लगे विशालकाय पेड़ से तलाई में गंटे मारने का तो अपना अलग ही आनंद था। घंटों तैरने के बाद भी शरीर तो थक जाता था, लेकिन मन नहीं भरता था। हर बारिश में तलाई लबालब हुआ करती थी। बांकिया सागर का ओवरफ लो पानी भी इसी तलाई में आता था। आज तो पानी आवक के सभी रास्ते लोगों की स्वार्थ लिप्सा व अतिक्र मण की भेंट चढ़ चुके हैं। बारिश की लगातार कमी ने भी तलाई के सौन्दर्य को फ ीका कर दिया है।
जीर्णोद्धार से सुधरी हालत
गनीमत है कि करीब १५-२० वर्ष पूर्व सरकार में तत्कालीन अकाल राहत मंत्री सांवरलाल जाट के प्रयासों से यहां सवाई कटला गोठ संघ के सदस्यों ने दिन-रात एक कर श्रमदान के माध्यम से तलाई का जीर्णाेद्धार करा दिया, वरना इसकी हालत बदतर हो चुकी होती। इसी वर्ष सैनी समाज की ओर से भी इसकी खुदाई करा कर मिट्टी बाहर निकाली गई।
गनीमत है कि करीब १५-२० वर्ष पूर्व सरकार में तत्कालीन अकाल राहत मंत्री सांवरलाल जाट के प्रयासों से यहां सवाई कटला गोठ संघ के सदस्यों ने दिन-रात एक कर श्रमदान के माध्यम से तलाई का जीर्णाेद्धार करा दिया, वरना इसकी हालत बदतर हो चुकी होती। इसी वर्ष सैनी समाज की ओर से भी इसकी खुदाई करा कर मिट्टी बाहर निकाली गई।
वर्तमान में पानी के अभाव में तलाई का सारा वैभव फ ीका पड़ गया है। रही-सही कसर तलाई में उगाए जा रहे कमल गट्टे से हो गई है, जिसने तलाई में नहाने-तैरने के आनंद को ही समाप्त कर दिया है।