संभाग में पिछले साल मानसून की बेरूखी के चलते हालात खराब होने शुरू हो गए हैं। बीते साल महज 350 मिलीमीटर बरसात हुई थी। इसका असर अब दिखने लगा है। आबादी क्षेत्रों में पीने का पानी नहीं है। महिलाओं को टैंकर, कुएं और हैडपम्प से पानी लाना पड़ रहा है। वहीं खेत-खलिहान भी बिना पानी के बंजर जैसे हो गए हैं।
सम्भाग के अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक और नागौर जिले में जून के सितंबर 2018 तक महज 350 मिलीमीटर बरसात हुई थी। कम बरसात से किसानों के लाखों के खाद-बीच बर्बाद हो गए। तीखी धूप और गर्मी ने उनके अच्छी फसल की आस तोड़ दी। जिले और आसपास के अधिकांश गांवों के यही हाल है। निकटवर्ती कायड़ गांव में टांके, तालाब, कुएं सूखे पड़े है। गांव के फूलसागर तालाब और श्रवण की नाडी में पानी की एक बंूद नहीं है। कभी लबालब रहने वाले कुएं सूखे पड़े हैं। महिलाओं को दूरदराज के इलाकों से पानी लाना पड़ रहा है। कहीं-कहीं टैंकर से पानी सप्लाई किया जा रहा है। राम के साथ राज भी रूठ गया है। मवेशियों के लिए भी पानी का जुगाड़ करना पड़ रहा है।
मौसम विभाग के दावे फेल
पिछले साल मौसम विभाग ने केरल में बरसात शुरू होने के बाद प्रदेश और अजमेर संभाग में मानसून सक्रिय होने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन मानसून रफ्तार नहीं पकड़ पाया। अगस्त में दो-तीन बार और सितंबर में एक बार ही ताबड़तोड़ बरसात हुई थी। अजमेर और जयपुर जिले की लाइफ लाइन कहे जाने वाले बीसलपुर बांध का जलस्तर पिछले साल करीब 314 आरएल मीटर था। वह लगातार घट रहा है।
पिछले साल मौसम विभाग ने केरल में बरसात शुरू होने के बाद प्रदेश और अजमेर संभाग में मानसून सक्रिय होने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन मानसून रफ्तार नहीं पकड़ पाया। अगस्त में दो-तीन बार और सितंबर में एक बार ही ताबड़तोड़ बरसात हुई थी। अजमेर और जयपुर जिले की लाइफ लाइन कहे जाने वाले बीसलपुर बांध का जलस्तर पिछले साल करीब 314 आरएल मीटर था। वह लगातार घट रहा है।
कडक़ धूप आर गर्मी फिर बढ़ गई है। पीने का पानी भी कम मिल रहा है। इस साल मानसून समय पर नहीं आया तो हालात बिगडऩे के आसार हैं। श्योराज गुर्जर, उप सरपंच हमें तो मवेशियों के लिए भी पानी का जुगाड़ करना पड़ रहा है। पिछले साल तो गर्मी के कारण बीज नहीं पनप सके थे। इससे काफी नुकसान हुआ है।
कान्हाराम गुर्जर किसान
कान्हाराम गुर्जर किसान