ब्रिटिशकाल में स्थापित मेयो कॉलेज में 1930 में बंगाल से आए बी.सी. गुई ने छात्रों को चित्रकला सिखानी प्रारंभ की। वे प्राचीन बंगाल स्टाइल की लक्ष्मी-विष्णु, कृष्णलीला और सनातन परम्परा पर आधारित आर्ट के सिद्धहस्त चित्रकार रहे। गुई के नाम से मेयो कॉलेज में म्यूजियम बना हुआ है। इसमें प्राचीन और आधुनिक काल की पेंटिंग, वस्त्र और अन्य सामग्री संकलित की गई है।
पोती ने संभाली विरासत
अशोक हाजरा की पुत्री माधवी अपने दादा की 90 साल पुरानी चित्रकला शैली को आगे बढ़ा रही हैं। वे 1982-83 में स्कूली पढ़ाई से ड्रॉइंग एंड पेंटिंग से जुड़ी हुई हैं। माता-पिता से प्राचीन बंगाल शैली के चित्र बनाने का प्रशिक्षण लिया। इनमें राधा-कृष्णलीला, दुर्गा-काली अवतार, विष्णु-लक्ष्मी और अन्य पेंटिंग शामिल हैं। माधवी ने नवाचार करते हुए जलीय (तैल) चित्रों की कला विकसित की। खासतौर पर पारम्परिक और आधुनिक जलीय वनस्पति-जीवन आधारित चित्रों का फ्यूजन बनाया है।
अशोक हाजरा की पुत्री माधवी अपने दादा की 90 साल पुरानी चित्रकला शैली को आगे बढ़ा रही हैं। वे 1982-83 में स्कूली पढ़ाई से ड्रॉइंग एंड पेंटिंग से जुड़ी हुई हैं। माता-पिता से प्राचीन बंगाल शैली के चित्र बनाने का प्रशिक्षण लिया। इनमें राधा-कृष्णलीला, दुर्गा-काली अवतार, विष्णु-लक्ष्मी और अन्य पेंटिंग शामिल हैं। माधवी ने नवाचार करते हुए जलीय (तैल) चित्रों की कला विकसित की। खासतौर पर पारम्परिक और आधुनिक जलीय वनस्पति-जीवन आधारित चित्रों का फ्यूजन बनाया है।
माता-पिता ने बढ़ाया शैली को
गुई के बाद उनके पुत्र अशोक हाजरा ने 1977 में मेयो कॉलेज में चित्रकला विभाग को संभाला। उन्होंने भी समकालीन चित्रकला (कॉन्टेंपरेरी आर्ट) के तहत कृष्णलीला और प्राचीन बंगला शैली, कोलाज पेंटिंग को बढ़ावा दिया। हाजरा की पत्नी दीपिका सावित्री कॉलेज और मेयो कॉलेज गल्र्स स्कूल में चित्रकला विभागाध्यक्ष रहीं। उन्होंने भी समकालीन चित्रकारी के तहत बंगला शैली के भित्ति चित्रों, कृष्णलीला, सनातन परम्परा से जुड़ी पेंटिंग को आगे बढ़ाया। उन्होंने 1964-65 में कुलपति स्वर्णपदक हासिल किया।
गुई के बाद उनके पुत्र अशोक हाजरा ने 1977 में मेयो कॉलेज में चित्रकला विभाग को संभाला। उन्होंने भी समकालीन चित्रकला (कॉन्टेंपरेरी आर्ट) के तहत कृष्णलीला और प्राचीन बंगला शैली, कोलाज पेंटिंग को बढ़ावा दिया। हाजरा की पत्नी दीपिका सावित्री कॉलेज और मेयो कॉलेज गल्र्स स्कूल में चित्रकला विभागाध्यक्ष रहीं। उन्होंने भी समकालीन चित्रकारी के तहत बंगला शैली के भित्ति चित्रों, कृष्णलीला, सनातन परम्परा से जुड़ी पेंटिंग को आगे बढ़ाया। उन्होंने 1964-65 में कुलपति स्वर्णपदक हासिल किया।
घर भी पेंटिंग का म्यूजियम
हाजरा परिवार का नाका मदार स्थित घर भी पेंटिंग का मिनी संग्रहालय है। घर के ड्राइंग रूम से सीढिय़ों और प्रमुख दीवारों पर सैकड़ों पेंटिंग लगी हैं। आगंतुक को इन्हें देखने और समझने में एक से दो घंटे लगते हैं।
हाजरा परिवार का नाका मदार स्थित घर भी पेंटिंग का मिनी संग्रहालय है। घर के ड्राइंग रूम से सीढिय़ों और प्रमुख दीवारों पर सैकड़ों पेंटिंग लगी हैं। आगंतुक को इन्हें देखने और समझने में एक से दो घंटे लगते हैं।