वे अलवर से जयपुर होते हुए अप्रेल 1891 में किशनगढ़ से अजमेर आए। विवेकानन्द ने ख्वाजा मोईनुद्दन चिश्ती की दरगाह, अकबर का प्राचीन महल (राजकीय संग्रहालय) देखा। बाद में तीर्थराज पुष्कर में ब्रह्माजी और सावित्री मंदिर के दर्शन किए। पुष्कर से वे पैदल चलते हुए आबू पर्वत पहुंचे। उन्होंने नक्की झील के ऊपर एक छोटी सी निर्जन गुफा में ध्यान-धारणा भी की।
किशनगढ़ रियासत के वकील मुंशी फैज अली स्वामीजी से प्रभावित होकर आबू गए। उन्होंने गुफा में वर्षा का पानी भरने का तर्क देकर उनके घर चलने का आग्रह किया। स्वामी विवेकानंद ने इसे स्वीकार किया था। आबू में ही अजमेर आर्य समाज के तात्कालीन अध्यक्ष हरविलास शारदा भी उनसे पहली बार बार मिले। खेतड़ी के महाराज अजीतसिंह भी उनसे मिले।
तीन दिन रहे वे यहां खेतड़ी प्रवास के बाद स्वामीजी ने 28 अक्टूबर 1891अजमेर के लिए प्रस्थान किया। शारदा एक्ट के जनक हरविलास शारदा तब मेयो कॉलेज में पढ़ाते थे। विवेकानंद मेयो कॉलेज में शारदा के निवास पर पहुंचे। वे यहां तीन दिन रहे। इस दौरान वेदांत, संस्कृति और समाज पर खूब चर्चा होती।
अजमेर से गुजरात गए यहां से स्वामीजी ब्यावर चले गए। शारदा के मित्र श्याम कृष्ण वर्मा बम्बई से आए थे। वे ब्यावर जाकर स्वामीजी को अपने साथ ले आए। विवेकानंद कुछ दिन वर्मा के बंगले पर रहे। संभवत: उनके विचारों से प्रभावित होकर वर्मा ने संपूर्ण जीवन भारत की आजादी के संघर्ष में लगा दिया। चौदह दिन बाद स्वामीजी अजमेर से गुजरात चले गए।
साभार: उमेश कुमार चौरसियारंगकर्मी एवं साहित्यकार