ये भी पढ़ें – भूख की इस जंग में टूटा इन मासूमों का सपना, पढ़िये अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस 2019 पर इन मासूमों की दर्दभरी कहानी प्राकृत भाषा में रुचि बढ़ी
प्रोफेसर सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया कि प्राकृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषाओं में से है। वर्तमान समय में भारत के प्राचीन ज्ञान कोष तक पहुंच बनाने के लिये भारतीय शोधार्थियों की रुचि प्राकृत में काफी बढ़ गयी है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिये प्राकृत तथा अन्य प्राचीन भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान के श्रोतों को सुरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भाषाएं समाज को प्रतिबिंबित करती हैं तथा प्राकृत भी इसका एक महत्वपूर्ण भाग है। इसके अध्ययन से हम अपने क्षेत्र, समाज तथा इतिहास की अब तक छुपी हुई जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार की ओर से उपयुक्त फंड प्रदान किया जाए तो शिक्षण संस्थाओं में प्राकृत में शोध को विकास प्राप्त हो सकता है।
प्रोफेसर सत्य प्रकाश शर्मा ने बताया कि प्राकृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषाओं में से है। वर्तमान समय में भारत के प्राचीन ज्ञान कोष तक पहुंच बनाने के लिये भारतीय शोधार्थियों की रुचि प्राकृत में काफी बढ़ गयी है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिये प्राकृत तथा अन्य प्राचीन भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान के श्रोतों को सुरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भाषाएं समाज को प्रतिबिंबित करती हैं तथा प्राकृत भी इसका एक महत्वपूर्ण भाग है। इसके अध्ययन से हम अपने क्षेत्र, समाज तथा इतिहास की अब तक छुपी हुई जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार की ओर से उपयुक्त फंड प्रदान किया जाए तो शिक्षण संस्थाओं में प्राकृत में शोध को विकास प्राप्त हो सकता है।
ये भी पढ़ें – उग्र किसानों ने राजीव भवन पर जड़ा ताला, अफसरों को बनाया बंधक, देखें वीडियो 1875 में संस्कृत की पढ़ाई शुरू हो गई थी
प्रोफेसर सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा कि अमुवि में शिक्षण के दौरान उन्हें लगा कि संस्कृत एक सुन्दर एवं उन्मुक्त भाषा है। संस्कृत समेत पाली एवं अन्य सभी प्राचीन भाषाओं एवं उनमें उपलब्ध ज्ञान के भण्डार को सुरक्षित एवं विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुहम्मडन एंग्लो ओरियन्टल कॉलेज में संस्कृत भाषा की पढ़ाई 1875 में प्रारंभ हो गयी थी तथा संस्कृत में स्नातकोत्तर की पढ़ाई 1922-23 में प्रारंभ हुई। जबकि प्रथम पीएचडी 1958 में परमानंद शास्त्री को अवार्ड हुई। डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की प्रथम डिग्री डॉक्टर रधुनाथ पाण्डे को दी गयी। उनके अतिरिक्त डॉ. एसपी सिंह तथा डॉ. एमएम अग्रवाल जैसे प्रख्यात विद्वानों को अमुवि द्वारा डीलिट की डिग्री प्रदान की जा चुकी है।
प्रोफेसर सत्य प्रकाश शर्मा ने कहा कि अमुवि में शिक्षण के दौरान उन्हें लगा कि संस्कृत एक सुन्दर एवं उन्मुक्त भाषा है। संस्कृत समेत पाली एवं अन्य सभी प्राचीन भाषाओं एवं उनमें उपलब्ध ज्ञान के भण्डार को सुरक्षित एवं विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुहम्मडन एंग्लो ओरियन्टल कॉलेज में संस्कृत भाषा की पढ़ाई 1875 में प्रारंभ हो गयी थी तथा संस्कृत में स्नातकोत्तर की पढ़ाई 1922-23 में प्रारंभ हुई। जबकि प्रथम पीएचडी 1958 में परमानंद शास्त्री को अवार्ड हुई। डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की प्रथम डिग्री डॉक्टर रधुनाथ पाण्डे को दी गयी। उनके अतिरिक्त डॉ. एसपी सिंह तथा डॉ. एमएम अग्रवाल जैसे प्रख्यात विद्वानों को अमुवि द्वारा डीलिट की डिग्री प्रदान की जा चुकी है।
ये भी पढ़ें – ससुराल में आए असलम का शव पेड़ पर लटका देख मची खलबली, देखें वीडियो एएमयू दे रहा प्रेरणा
प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय संस्कृत भाषा एवं साहित्य समेत वेद, उपनिषद एवं अन्य प्राचीन पुस्तकों पर शोध एवं अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सेवाऐं दे रहा है। आज जब क्षेत्रीय भाषाओं की सुरक्षा एवं विकास कार्य में लगे विद्वानों एवं शोधार्थियों का लोग उपहास करते हैं, अमुवि हमें यह प्रेरणा देता है कि हम संस्कृत समेत सभी प्राचीन भाषाओं के विकास के लिये कार्य करें। ज्ञात हो कि प्रोफेसर सत्य प्रकाश शर्मा गत 16 वर्षों से इंडियन सोसाइटी फाॅर बुद्विस्ट स्टडीज़ के निर्विरोध अध्यक्ष भी हैं।
प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय संस्कृत भाषा एवं साहित्य समेत वेद, उपनिषद एवं अन्य प्राचीन पुस्तकों पर शोध एवं अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सेवाऐं दे रहा है। आज जब क्षेत्रीय भाषाओं की सुरक्षा एवं विकास कार्य में लगे विद्वानों एवं शोधार्थियों का लोग उपहास करते हैं, अमुवि हमें यह प्रेरणा देता है कि हम संस्कृत समेत सभी प्राचीन भाषाओं के विकास के लिये कार्य करें। ज्ञात हो कि प्रोफेसर सत्य प्रकाश शर्मा गत 16 वर्षों से इंडियन सोसाइटी फाॅर बुद्विस्ट स्टडीज़ के निर्विरोध अध्यक्ष भी हैं।
ये भी पढ़ें – “मैं तालाब हूँ मुझे बचा लो साहब”