यह भी पढ़ें आंकड़ों की जादूगरी, शौचालय पूर्ण नहीं गांव कर दिया ओडीएफ शोध प्रकाशित इस विषय पर जेएन मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग डॉ. अबु सईद, डॉ. आफताब अहमद, प्रोफेसर एससी शर्मा तथा प्रोफेसर एस अबरार हसन का एक शोधपत्र ‘‘इण्डियन जर्नल ऑफ ऑटोलेरिंगोलोजी एण्ड हैड एण्ड नेक सर्जरी’’ में प्रकाशित हुआ है।
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ऐसे किया गया शोध जेएन मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग चिकित्सकों ने इस महत्वपूर्ण शोध के प्रारंभ में 30 से 60 वर्ष की आयु के 80 रोगियों का गहराई से अध्ययन किया, जो नाक से रक्त आने, चेहरे पर सूजन तथा सिर दर्द के रोग से पीड़ित थे। छींकते समय उनकी नाक से कीड़े भी निकलते थे। इन रोगियों के नाक, कान, आदि का परीक्षण किया गया। तत्पश्चात उन्हें दो समूहों में विभाजित किया गया। एक समूह के रोगियों को आयवरमेक्टिन की 6 एमजी दी गयी। शोध में ज्ञात हुआ कि एक ग्रुप जिसकी अन्य तरीकों से चिकित्सा की जा रही थी, उनके कीड़े समाप्त होने में लगभग 42 घण्टे लगे। जिन रोगियों को आयवरमेक्टिन औषधि दी गई, उनके कीड़े लगभग 24 घण्टे में समाप्त हो गये। यह बीमारी मक्खियों के नाक में प्रवेश कर अंडा देने से उत्पन्न होती है।
ऐसे किया गया शोध जेएन मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग चिकित्सकों ने इस महत्वपूर्ण शोध के प्रारंभ में 30 से 60 वर्ष की आयु के 80 रोगियों का गहराई से अध्ययन किया, जो नाक से रक्त आने, चेहरे पर सूजन तथा सिर दर्द के रोग से पीड़ित थे। छींकते समय उनकी नाक से कीड़े भी निकलते थे। इन रोगियों के नाक, कान, आदि का परीक्षण किया गया। तत्पश्चात उन्हें दो समूहों में विभाजित किया गया। एक समूह के रोगियों को आयवरमेक्टिन की 6 एमजी दी गयी। शोध में ज्ञात हुआ कि एक ग्रुप जिसकी अन्य तरीकों से चिकित्सा की जा रही थी, उनके कीड़े समाप्त होने में लगभग 42 घण्टे लगे। जिन रोगियों को आयवरमेक्टिन औषधि दी गई, उनके कीड़े लगभग 24 घण्टे में समाप्त हो गये। यह बीमारी मक्खियों के नाक में प्रवेश कर अंडा देने से उत्पन्न होती है।
यह भी पढ़ें वीडियोः मामूली बात को लेकर पड़ोसियों ने उठाया दुस्साहसिक कदम, दिया संगीन घटना को अंजाम पारंपरिक चिकित्सा की जरूरत नहीं इस सन्दर्भ में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ईएनटी विभाग के चेयरमैन प्रोफेसर एससी शर्मा ने कहा कि इस शोध से चिकित्सकों के लिये सरलता उत्पन्न होगी तथा नाक के कीड़ों को हटाने की उस पारम्परिक चिकित्सा की आवश्यकता नहीं रहेगी, जिसमें क्लोरोफार्म तथा तारपीन का तेल प्रयोग किया जाता था। ईएनटी विभाग के प्रोफेसर के चन्द्रा, प्रोफेसर पी कुमार तथा डॉ. महताब आलम ने चिकित्सकों के दल को इस नवीन तथा उपयोगी शोध के लिये बधाई दी है।