अलीगढ़ के इगलास के गांव कैमथल के रहने वाले पालेंद्र के पिता महेशपाल कबड्डी के खिलाड़ी थे। पिता को खेलते देखकर पालेन्द्र ने भी खेल जगत में कॅरियर बनाने का सपना देखा था। बेटे के इस सपने को पूरा करने के लिए पिता ने हर संभव कोशिश की। हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद उनके पिता ने खेल संगठनों से मदद लेकर पालेन्द्र का दखिला डीपीएस में करा दिया। महेश ने भी कबड्डी की कई प्रतियोगिताएं जीती थीं, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते वे अपना हुनर कभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साबित नहीं कर पाए। लिहाजा वे बेटे को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने के लिए उसकी हर संभव मदद करते थे और हर वक्त बेटे को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।
महेश घड़ी की दुकान चलाकर परिवार का पालन पोषण करते थे और बेटे की जरूरतों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। कई बार उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पिता को कर्ज भी लेना पड़ा था।
पालेन्द्र को भी अपने पिता के सम्मान का पूरा खयाल था। दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद डीपीएस ने उसे अपने हॉस्टल में जगह दी थी। डीपीएस की ओर से उसकी पढ़ाई के साथ ही उसका स्पोर्ट्स करियर का खर्चा भी उठाया जा रहा था। लेकिन पालेन्द्र को इसका पूरा खयाल था। नेशनल इंटर स्कूल प्रतियोगिता में जब पालेन्द्र ने 1.25 लाख रुपए इनाम राशि के रूप में जीते तो उस राशि से डीपीएस का कर्ज उतारा था।
पालेंद्र ने सीनियर स्टेट एथलेटिक्स मीट के तहत लंबी कूद में स्वंर्ण पदक व 100 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता था। उन्होंने यूपी एथलेटिक टीम की कप्तानी संभाली थी। उनकी अगुआई में ही यूपी टीम ने वर्ष 2016 में केरल की कालीकट यूनिवर्सिटी में आयोजित नेशनल यूथ चैंपियनशिप में शामिल हुई। वर्ष 2016 में ही लखनऊ में आयोजित ओपेन स्टेट एथलेटिक्स मीट के तहत 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक और लंबी कूद में रजत पदक जीता था। वर्ष 2017 में नई दिल्ली में आयोजित ओपन स्टेट एथलेटिक्स मीट में लंबी कूद व 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था। बैंकॉक में 21-23 मई को द्वितीय एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2017 में मिड रिले रेस में स्वर्ण पदक व 200 मीटर दौड़ में उन्होंने रजत पदक जीता था। हाल ही इंडिया कैंप में वर्ष 2020 में होने वाले ओलंपिक की तैयारियों के लिए उनका चयन हुआ था।