मामला 2005 का
मामला वर्ष 2005 का है। कुलपति ने सहायक वित्त अधिकारी के पद पर शाकिब अरसलन की नियुक्ति की थी। आरोप है कि नियुक्ति प्रक्रिया में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नियमों की अनदेखी की गई। इसके साथ ही सीबीआई ने शाकिब अरसलन के खिलाफ भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है। अरसलन इस समय संयुक्त वित्त अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
मामला वर्ष 2005 का है। कुलपति ने सहायक वित्त अधिकारी के पद पर शाकिब अरसलन की नियुक्ति की थी। आरोप है कि नियुक्ति प्रक्रिया में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नियमों की अनदेखी की गई। इसके साथ ही सीबीआई ने शाकिब अरसलन के खिलाफ भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है। अरसलन इस समय संयुक्त वित्त अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
क्या है मामला
एएमयू ने एक जनवरी, 2004 को सहायक वित्त अधिकारी और उप वित्त अधिकारी के पद की विज्ञप्ति जारी की थी। इसमें 22 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया। इनमें से नौ अभ्यर्थी चयन के योग्य पाए गए। सीबीआई ने प्रारंभिक जांच में पाया कि अरसलन सहायक वित्त अधिकारी के पद के योग्य नहीं था। अरसलन की सीए की डिग्री नियमानुसार अमान्य थी। इसके बाद भी तत्कालीन उप वित्त अधिकारी यास्मीन जलाल बेग ने अरसलन को योग्य माना और साक्षात्कार के लिए बुलाया। बेग का कहना था कि कुलसचिव के माध्यम से फाइल कुलपति के पास गई। कुलपति ने स्वीकृति दी। सीबीआई ने पाया कि एक और अभ्यर्थी के पास सीए की डिग्री थी और उसके 60 फीसदी नम्बर थे। अरसलन के 55 फीसदी नम्बर थे। इसके बाद भी अरसलन को नियुक्त किया गया।
एएमयू ने एक जनवरी, 2004 को सहायक वित्त अधिकारी और उप वित्त अधिकारी के पद की विज्ञप्ति जारी की थी। इसमें 22 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया। इनमें से नौ अभ्यर्थी चयन के योग्य पाए गए। सीबीआई ने प्रारंभिक जांच में पाया कि अरसलन सहायक वित्त अधिकारी के पद के योग्य नहीं था। अरसलन की सीए की डिग्री नियमानुसार अमान्य थी। इसके बाद भी तत्कालीन उप वित्त अधिकारी यास्मीन जलाल बेग ने अरसलन को योग्य माना और साक्षात्कार के लिए बुलाया। बेग का कहना था कि कुलसचिव के माध्यम से फाइल कुलपति के पास गई। कुलपति ने स्वीकृति दी। सीबीआई ने पाया कि एक और अभ्यर्थी के पास सीए की डिग्री थी और उसके 60 फीसदी नम्बर थे। अरसलन के 55 फीसदी नम्बर थे। इसके बाद भी अरसलन को नियुक्त किया गया।
कुलपति ने कार्यपरिषद को नहीं दी जानकारी
कार्य परिषद से स्वीकृति की प्रत्याशी में तत्कालीन कुलपति नसीम अहमद ने अरसलन को नियुक्त कर लिया। 4 अक्टूबर, 2005 को कार्य परिषद की बैठक हुई थी। नियमानुसार इस बैठक में अरसलन की नियुक्ति का मामला रखा जाना चाहिए था, लेकिन नहीं रखा गया। कुलपति को यह अधिकार नहीं था कि वे किसी भी अभ्यर्थी की योग्यता में छूट दे। कार्यपरिषद को भी सूचित नहीं किया गया। इसी कारण कुलपति को दोषी पाया गया है। उनके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज की गई है।
कार्य परिषद से स्वीकृति की प्रत्याशी में तत्कालीन कुलपति नसीम अहमद ने अरसलन को नियुक्त कर लिया। 4 अक्टूबर, 2005 को कार्य परिषद की बैठक हुई थी। नियमानुसार इस बैठक में अरसलन की नियुक्ति का मामला रखा जाना चाहिए था, लेकिन नहीं रखा गया। कुलपति को यह अधिकार नहीं था कि वे किसी भी अभ्यर्थी की योग्यता में छूट दे। कार्यपरिषद को भी सूचित नहीं किया गया। इसी कारण कुलपति को दोषी पाया गया है। उनके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज की गई है।