scriptHanuman Ji और Ravan की रोचक कथा से मिल रही बड़ी सीख | Inspirational Motivational story of Hanumana and Ravan hindi news | Patrika News

Hanuman Ji और Ravan की रोचक कथा से मिल रही बड़ी सीख

locationअलीगढ़Published: Nov 12, 2018 03:11:11 pm

हनुमान जी (Lord Hanuman) रावण (Ravan) के हृदय में भगवान को बिठाने की बात करते हैं, इसलिए वे विद्यावान हैं ।

हनुमान

हनुमान

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर।
एक होता है विद्वान और एक विद्यावान । दोनों में आपस में बहुत अन्तर है। इसे हम ऐसे समझ सकते हैं, रावण विद्वान है और हनुमान जी विद्यावान हैं। रावण के दस सिर हैं। चार वेद और छह शास्त्र दोनों मिलाकर दस हैं। इन्हीं को दस सिर कहा गया है। जिसके सिर में ये दसों भरे हों, वही दस शीश हैं। रावण वास्तव में विद्वान है। लेकिन विडम्बना क्या है ? सीता जी का हरण करके ले आया। कईं बार विद्वान लोग अपनी विद्वता के कारण दूसरों को शान्ति से नहीं रहने देते। उनका अभिमान दूसरों की सीता रूपी शान्ति का हरण कर लेता है और हनुमान जी उन्हीं खोई हुई सीता रूपी शान्ति को वापस भगवान से मिला देते हैं ।
हनुमान
हनुमान जी ने कहा —
विनती करउँ जोरि कर रावन ।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन ॥
हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं विनती करता हूँ, तो क्या हनुमान जी में बल नहीं है ? नहीं, ऐसी बात नहीं है। विनती दोनों करते हैं, जो भय से भरा हो या भाव से भरा हो। रावण ने कहा कि तुम क्या, यहाँ देखो कितने लोग हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़े हैं।
कर जोरे सुर दिसिप विनीता
भृकुटी विलोकत सकल सभीता॥
यही विद्वान और विद्यावान में अन्तर है । हनुमान जी गये, रावण को समझाने। यही विद्वान और विद्यावान का मिलन है।
रावण के दरबार में देवता और दिग्पाल भय से हाथ जोड़े खड़े हैं और भृकुटी की ओर देख रहे हैं। परन्तु हनुमान जी भय से हाथ जोड़कर नहीं खड़े हैं। रावण ने कहा भी —
कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही।
देखउँ अति असंक सठ तोही ॥
रावण ने कहा – “तुमने मेरे बारे में सुना नहीं है ? तू बहुत निडर दिखता है !”
हनुमान जी बोले – “क्या यह जरुरी है कि तुम्हारे सामने जो आये, वह डरता हुआ आये ?” रावण बोला – “देख लो, यहाँ जितने देवता और अन्य खड़े हैं, वे सब डरकर ही खड़े हैं ।” हनुमान जी बोले – “उनके डर का कारण है, वे तुम्हारी भृकुटी की ओर देख रहे हैं ।”
भृकुटी विलोकत सकल सभीता।
हनुमान
परन्तु मैं भगवान राम की भृकुटी की ओर देखता हूँ । उनकी भृकुटी कैसी है ? बोले –

भृकुटी विलास सृष्टि लय होई ।
सपनेहु संकट परै कि सोई ॥
जिनकी भृकुटी टेढ़ी हो जाये तो प्रलय हो जाए और उनकी ओर देखने वाले पर स्वप्न में भी संकट नहीं आ । मैं उन श्रीराम जी की भृकुटी की ओर देखता हूँ।
रावण बोला – “यह विचित्र बात है । जब राम जी की भृकुटी की ओर देखते हो तो हाथ हमारे आगे क्यों जोड़ रहे हो ?
विनती करउँ जोरि कर रावन ।
हनुमान जी बोले – “यह तुम्हारा भ्रम है । हाथ तो मैं उन्हीं को जोड़ रहा हूँ ।”

रावण बोला – “वह यहाँ कहाँ हैं ?” हनुमान जी ने कहा कि “यही समझाने आया हूँ। मेरे प्रभु राम जी ने कहा था —
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमन्त।
मैं सेवक सचराचर रुप स्वामी भगवन्त॥
भगवान ने कहा है कि सबमें मुझको देखना । इसीलिए मैं तुम्हें नहीं, तुझमें भी भगवान को ही देख रहा हूँ ।” इसलिए हनुमान जी कहते हैं —
खायउँ फल प्रभु लागी भूखा ।
और सबके देह परम प्रिय स्वामी ॥
हनुमान जी रावण को प्रभु और स्वामी कहते हैं और रावण —
मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही ॥
हनुमान
रावण खल और अधम कहकर हनुमान जी को सम्बोधित करता है । यही विद्यावान का लक्षण है कि अपने को गाली देने वाले में भी जिसे भगवान दिखाई दे, वही विद्यावान है ।

विद्यावान का लक्षण है —
विद्या ददाति विनयं ।
विनयाति याति पात्रताम् ॥
पढ़ लिखकर जो विनम्र हो जाये, वह विद्यावान और जो पढ़ लिखकर अकड़ जाये, वह विद्वान । तुलसी दास जी कहते हैं —
बरसहिं जलद भूमि नियराये ।
जथा नवहिं वुध विद्या पाये ॥
जैसे बादल जल से भरने पर नीचे आ जाते हैं, वैसे विचारवान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं । इसी प्रकार हनुमान जी हैं – विनम्र और रावण है – विद्वान ।
यहाँ प्रश्न उठता है कि विद्वान कौन है ?
इसके उत्तर में कहा गया है कि जिसकी दिमागी क्षमता तो बढ़ गयी, परन्तु दिल खराब हो, हृदय में अभिमान हो, वही विद्वान है और अब प्रश्न है कि विद्यावान कौन है ?
उत्तर में कहा गया है कि जिसके हृदय में भगवान हो और जो दूसरों के हृदय में भी भगवान को बिठाने की बात करे, वही विद्यावान है ।

हनुमान जी ने कहा – “रावण ! और तो ठीक है, पर तुम्हारा दिल ठीक नहीं है। कैसे ठीक होगा ? कहा कि —
राम चरन पंकज उर धरहू ।
लंका अचल राज तुम करहू ॥
अपने हृदय में राम जी को बिठा लो और फिर मजे से लंका में राज करो । यहाँ हनुमान जी रावण के हृदय में भगवान को बिठाने की बात करते हैं, इसलिए वे विद्यावान हैं ।

सीख
विद्वान ही नहीं बल्कि “विद्यावान” बनने का प्रयत्न करें।

प्रस्तुतिः पंकज धीरज, व्यापारी नेता, अलीगढ़

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