ये है अलीगढ़ लोकसभा का इतिहास
अलीगढ़ लोकसभा सीट की बात करें, तो आजादी के बाद पहली बार वर्ष 1980 में जनता पार्टी की एस इंद्रा कुमारी सांसद निर्वाचित हुईं थीं। 1984 में कांग्रेस की ऊषा रानी तोमर निर्वाचित हुई। 1991, 1996, 1998 और 1999 में लगातार चार बार भाजपा की शीला गौतम निर्वाचित हुईं और संसद में अलीगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 2009 में बसपा की राजकुमारी चौहान निर्वाचित हुईं। रामसखी कठेरिया और ज्ञानवती विधायक बनीं।
अलीगढ़ लोकसभा सीट की बात करें, तो आजादी के बाद पहली बार वर्ष 1980 में जनता पार्टी की एस इंद्रा कुमारी सांसद निर्वाचित हुईं थीं। 1984 में कांग्रेस की ऊषा रानी तोमर निर्वाचित हुई। 1991, 1996, 1998 और 1999 में लगातार चार बार भाजपा की शीला गौतम निर्वाचित हुईं और संसद में अलीगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद 2009 में बसपा की राजकुमारी चौहान निर्वाचित हुईं। रामसखी कठेरिया और ज्ञानवती विधायक बनीं।
इन महिलाओं को भी मिला मौका
सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व तो किया ही, इसके साथ भाजपा की सावित्री वार्ष्णेय एवं शकुंतला भारती ने मेयर का चुनाव जीता। यहीं नहीं जिले की राजनीति में रामसखी कठेरिया एवं डॉ. उमेश कुमारी शीर्ष पर पहुंची और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। वहीं हैरान कर देने वाली ये बात है कि महिला अधिकार की बात तो सभी करते हैं, लेकिन महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए किसी भी दल ने प्रयास नहीं किया। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद एक महिला हैं, लेकिन उन्होंने सिर्फ एक बार महिला को मौका गया। वहीं भाजपा द्वारा महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की वकालत की जाती है, लेकिन जनपद के हिसाब से देखे तो विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव में महिलाएं उपेक्षित नजर आ रही हैं।
सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व तो किया ही, इसके साथ भाजपा की सावित्री वार्ष्णेय एवं शकुंतला भारती ने मेयर का चुनाव जीता। यहीं नहीं जिले की राजनीति में रामसखी कठेरिया एवं डॉ. उमेश कुमारी शीर्ष पर पहुंची और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। वहीं हैरान कर देने वाली ये बात है कि महिला अधिकार की बात तो सभी करते हैं, लेकिन महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए किसी भी दल ने प्रयास नहीं किया। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद एक महिला हैं, लेकिन उन्होंने सिर्फ एक बार महिला को मौका गया। वहीं भाजपा द्वारा महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की वकालत की जाती है, लेकिन जनपद के हिसाब से देखे तो विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव में महिलाएं उपेक्षित नजर आ रही हैं।