अलीगढ़

बरकतों और फ़ज़ीलतों का महीना है रमजान, जानिए कौन रख सकता है रोजा, देखें वीडियो

ईदगाह जमालपुर मस्जिद के इमाम मुफ़्ती ज़ाहिद क़ासमी ने बताया कि मुस्लिम मर्द और औरतों पर रोज़े फ़र्ज़ होने पर क्या हुक्म है।

अलीगढ़May 05, 2019 / 04:59 pm

अमित शर्मा

Ramadan

अलीगढ़। रमज़ान बरकतों और फ़ज़ीलतों का महीना है। रमज़ान बड़े क्या, बच्चे, बूढ़े लोग भी इस महीने का बड़ा एहतेमाम करते हैं। रमज़ान के इस बाबरकत महीने में लोग इस सख़्त गर्मी में किस तरह रोज़े से रहेंगे, ये जानने की कोशिश की। ये महीना बड़ी बरकतों वाला है। इस महीने में इबादत करने पर इसका शवाब 70 गुना तक दिया जाता है। गर्मी में सख़्त रमज़ान आ रहे हैं लेकिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त जिसको तौफ़ीक़ देता है सिर्फ़ वही रोज़े रखता है। चांद रात से ही तरावीह का सिलसिला शुरू हो जायेगा। रोज़े की अहमियत क्या है। रोज़ा छोड़ने वालों के लिए क्या हुक्म है। एक रोज़ा तर्क किया तो जिंदगी भर रोज़े रखें, तब भी उस सवाब से रहेंगे महरूम।
 

रोजा रखने का शवाब रमजान में ही

ईदगाह जमालपुर मस्जिद के इमाम मुफ़्ती ज़ाहिद क़ासमी ने बताया कि मुस्लिम मर्द और औरतों पर रोज़े फ़र्ज़ होने पर क्या हुक्म है। अगर रोज़े फ़र्ज़ होने के बाद भी नहीं रखते हैं। ये रमज़ान का महीना बड़ी बरकतों वाला अल्लाह के रसूल मोहम्मद सलल्लाहो अलाइही वसल्लम ने शाबान के महीने में एक ख़ुत्बे के दौरान कहा था कि जो शख़्स एक फ़र्ज़ की बराबर काम करता है तो उसको 70 फ़र्ज़ की बराबर इसका शवाब मिलेगा। एक नफ़ील का शवाब एक फ़र्ज़ की बराबर मिलेगा। रमज़ान के रोज़े मर्द और बालिग़ बच्चों पर भी हैं। हज़रत अली रज़ीअल्लाह ताला अन्हू ने फ़रमाया कि रोज़े छोड़ देने की क़ज़ा किया है। रोज़ों के बाद रोज़े की क़ज़ा तो हो जाएगी लेकिन इसका शवाब जो रमज़ान में है, वो नहीं मिल सकता है। हत्ता के पूरी ज़िंदगी रोज़े रखे लेकिन इसका शवाब जो रमज़ान में है वो नहीं मिल सकता। लोगों के लिए हिदायत देते हुए कहा कि रोज़ा सिर्फ़ अल्लाह के लिए है। इसका बदल अल्लाह ही देगा। मुस्लिम मर्द, औरतों और बालिग़ बच्चों को रोज़ा रखना चाहिए। पता नहीं अगले साल रोज़े रखने की तौफ़ीक़ मिल भी पाए या नहीं ।
सादिक हुसैन की जुबानी

ठेली लगाने वाले सादिक़ हुसैन ने बताया कि 4 से पांच घंटे इस तपती धूप में रहता हूँ। रोज़े से भी रहता हूँ, लेकिन अहसास नहीं होता ज़रा सा भी। आम दिनों में प्यास लगती रहती है। इस महीने में अल्लाह की फ़ज़ीलत नाज़िल होती है। रोज़ा रखें अल्लाह ताला उनके रोज़े आसान कर देगा। ओवैस आलम ने कहा है कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें रोज़े रखने की तौफ़ीक़ दी। मुस्लिम मर्द और औरतों पर फ़र्ज़ है। कोई परेशानी हो जिसमें जान जाने का ख़तरा हो या किसी सफ़र पर निकले हुए हों, जहां पानी भी मयस्सर न हो सके, तभी रोज़ा छोड़ा जा सकता है।
इनपुटः कौशल शर्मा, अलीगढ़

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