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अलीगढ़

मच्छरों को भगाने वाली मॉस्क्वीटो कॉइल के बारे में ये बातें जानकर हैरान रह जाएंगे!

एक मॉस्क्वीटो कॉइल में 100 सिगरेट जितना धुआं होता है। इससे सीओपीडी का खतरा सर्वाधिक है। जरूरी नहीं है कि धूम्रपान करने वालों को ही सीओपीडी हो।

अलीगढ़Nov 15, 2017 / 11:12 am

suchita mishra

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अलीगढ़। 30 मिलियन से अधिक जिंदगियों को प्रभावित करने वाला और कई सारे लोगों में अज्ञात रूप से मौजूद सीओपीडी( क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज़) दुनिया भर में 5वां सबसे घातक रोग बन चुका है। सीओपीडी को हमेशा धूम्रपान करने वालों का रोग माना जाता रहा है। लेकिन अब नॉन स्मोकिंग सीओपीडी विकासशील देशों में एक बड़ा मामला बन चुका है। यह बात अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जेएन मेडिकल कॉलेज के प्रिन्सिपल व सीएमएस प्रो. एससी शर्मा ने टीबी एण्ड रेसपायरेटरी डिसीज विभाग में विश्व सीओपीडी दिवस कार्यक्रम के तहत अपने व्याख्यान में कही। जो धूम्रपान नहीं करते हैं, वे भी सीओपीडी के शिकार हो रहे हैं। मच्छर भगाने की कॉइल इस समय सबसे बड़ा खतरा है। सीओपीडी के लक्षण हैं- खांसी, कफ निकलना और सांस लेने में समस्या।
सीओपीडी से मृत्यु दर ऊंची
उन्होंने कहा कि अक्षमता का एक बड़ा कारण रहा सीओपीडी 50 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों में मौत का दूसरा अग्रणी कारण हैं। वैसे तो सिगरेट पीने और सीओपीडी के बीच पुख्ता संबंध स्थापित किया गया है लेकिन हाल के अध्ययनों में पता चला है कि ऐसे अन्य अनेक जोखिम कारक हैं, जो धूम्रपान नहीं करने वालों में रोग को उत्प्रेरित करते हैं। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में करीब आधी जनसंख्या बायोमास ईंधन के धुएं के संपर्क में आती है, जिसका उपयोग रसोई और गर्म करने के प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इसलिये ग्रामीण इलाकों में बायोमास के संपर्क में आना सीओपीडी का मुख्य कारण है, जिससे सीओपीडी के कारण मृत्यु दर ऊंची है।
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50 प्रतिशत मौतें बायोमास के धुएं के कारण
टीबी एण्ड रेसपायरेटरी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मुहम्मद शमीम ने कहा कि शहरी भारत में, 32 प्रतशत घरों में अब भी बायोमास स्टोव का उपयोग होता है, 22 प्रतिशत लकड़ी का उपयोग करते हैं, आठ प्रतिशत केरोसीन और बाकी लिक्विड पेट्रोलियम गैस या नैचुरल गैस जैसे साफ सुथरे ईंधन का उपयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों में सीओपीडी से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें बायोमास के धुएं के कारण होती हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत महिलाएं होती हैं। बायोमास ईंधन जैसे लकड़ी, पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष धूम्रपान करने जितना ही सक्रिय जोखिम पैदा करती है।
रसोई के धुएं से प्रदूषण
प्रो. राकेश भार्गव ने कहा कि चीन, भारत और उप-सहाराई अफ्रीका में 80 प्रतिशत से अधिक घरों में बायोमास ईंधन का उपयोग रसोई बनाने के लिए किया जाता है, क्योंकि यह आसानी से उपलब्ध है। बायोमास ईंधन घर के अन्दर बहुत ही ऊंची मात्रा में प्रदूषण पैदा करते हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर, ग्रामीण इलाकों में रसोई घरों में मूलभूत सुविधाओं का आभाव होता है और उनमें हवा के आवागमन की व्यवस्था भी ठीक नहीं होती, जिससे गृहणियों को गैसीय प्रदूषकों और कणों के अत्यंत ऊंचे स्तर का सामना करना पड़ता है।
दिल्ली में फेंफड़ों की क्षमता में गिरावट
प्रोफेसर जुबैर अहमद ने कहा कि बायोमास ईंधन के अलावा, वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति ने भी शहरी इलाकों में सीओपीडी को चिंता का सबब बना दिया है। वायु प्रदूषण की दृष्टि से दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 10 भारत में हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वे के अनुसार नियंत्रित समूह के 20.1 प्रतिशत की तुलना में दिल्ली में 40.3 प्रतिशत लोगों के फेफड़े की काम करने की क्षमता में गिरावट आई है।
सीओपीडी बड़ा व्यवसायगत जोखिम
डॉक्टर नफीस ए खान ने कहा कि सीओपीडी एक बड़ा व्यवसायगत जोखिम भी है। नेशनल हेल्थ एंड न्यूट्रीशन एक्जामिनेशन सर्वे (एनएचएएनईएस) ने एक सर्वे किया था और पाया था कि परिवहन संबंधी व्यवसायों, मशीन ऑपरेटर्स, कंस्ट्रक्शन ट्रेड्स फ्रेट, स्टाफ और मटीरियल का व्यापार करने वालों, रिकॉर्ड्स प्रोसेसिंग और डिस्ट्रिब्यूशन क्लर्क, सेल्स आर वेट्रेसेस तक से जुड़े उद्योगों और व्यवसायों को सीओपीडी का अधिक जोखिम है।
पेस्टीसाइड्स से भी समस्या
डॉक्टर इमराना मसूद ने कहा कि सीओपीडी के भार को बढ़ाने वाला एक अन्य कारक है कोलिनेस्टरेज-इन्हिबिटिंग एग्रीकल्चरल पेस्टीसाइड्स। भारत में अक्सर उपयोग में लाए जने वाले कृषि संबंधी कीटनाशकों के संपर्क में लंबे समय तक आने के कारण श्वसन संबंधी समस्याओं में योगदान दिया है। फेंफड़े की कार्यक्षमता घटी है और सीओपीडी हुआ है। उन्होंने कहा कि डाटा से पता चलता है कि किसानों (धूम्रपान नहीं करने वालों, कीटनाशक का उपयोग करने वालों) में सीओपीडी का मामला 18.1 प्रतिशत था।
संकट को निमंत्रण
डॉक्टर उमम बनीं ने कहा कि हमारे घरों में एक लोकप्रिय उत्पाद अक्सर ठंडी के मौसम में जगह बनाता है और वो है मास्क्वीटो कॉइल। यह जानकर हैरानी होगी कि मास्क्वीटो कॉइल से 100 सिगरेट जितना धुआं (पीएम 2.5) निकलता है और 50 सिगरेट जितना फॉर्मलडिहाइड निकलता है। डॉ. उमम ने कहा कि हम भले ही नियमित धूम्रपान नहीं करते हों लेकिन अनचाहे ही हम अपनी सेहत से समझौता करने वाले उत्पादों का उपयोग करके संकट को निमंत्रण दे रहे हैं।

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