साध्वीजी ने कहा, धर्म किसी एक का नहीं है, जो इसे मानता है, यह उसी का है। धर्म में दिखावा बिलकुल नहीं होना चाहिए क्योंकि दिखावे में दु:ख होता है। महावीर स्वामी ने भी दुनिया को यही संदेश दिया था कि सिद्धांतों और विचारों पर चलकर ही शांति को पुनस्र्थापित किया जा सकता है। उन्होंने हमेशा आपसी एकता और प्रेम की राह पर चलकर जियो और जीने दो तथा अहिंसा के भाव को सर्वोपरि रखा। धर्म का बंटवारा नहीं होना चाहिए। वर्तमान समय में आपसी झगड़ों से संपूर्ण संसार ग्रसित है। चारों ओर हाहाकार मचा है। प्राणीमात्र सुख-शांति व आनंद के लिए तरस रहा है। ऐसे नाजुक क्षणों में सिर्फ महावीर स्वामी की अहिंसा ही विश्व शांति के लिए प्रासंगिक हो सकती है। भगवान महावीर की वाणी को यदि हम जन-जन की वाणी बना दें एवं हमारा चिंतन व चेतना जाग्रत कर प्रेम, भाईचारा, विश्वास अर्जित कर सके तो संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित कर हम पुन: विश्व गुरु का स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
प्रवचन के दौरान भगवान महावीर के बाल्यकाल का वर्णन साध्वीजी द्वारा सुनाया गया। इस दौरान वर्धमान महावीर की शिक्षा के लिए जाने के प्रसंग को लेकर बच्चों को भगवान महावीर बनाने की बोली लगाई गई, जिसका लाभ रमेशचंद्र रतीचंद जैन परिवार ने लिया। शाम को महावीर बने बच्चों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने के प्रसंग का प्रस्तुतिकरण चल समारोह निकालकर किया गया। इस दौरान सभी बच्चों को स्टेशनरी किट श्री संघ द्वारा बांटे गए।