स्थानीय राजेंद्र उपाश्रय में पर्व की महत्ता पर व्याख्यान देते हुए साध्वी शासनलता श्रीजी ने कहा कि इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है। पहले तीन दिन अष्टान्हिका व्याख्यान का वाचन चार दिन कल्पसूत्र वाचन और आठवें दिन कल्पसूत्र का मूल वाचन होगा। आठों कर्मों का नाश करने के लिए आठ दिन हैं। 12 महीने में जो पाप, वैर, राग और द्वेष किया है, उन्हें याद कर क्षमापना करना है। उन्होंने कहा कि पर्युषण में आत्मा की खोज शांति व एकांत रहकर करना है और जीवन को टटोलना है अपनी भूलों को सुधारना है। संपूर्ण कर्म के दुष्ट कामों का निवासरण करने पयुर्षण आया है। ये लोकोत्तर व त्याग धर्म का पर्व है। जितना त्याग करेंगे, कर्मों के आसरों से दूर होकर उन्नति के पथ पर जाएंगे।
क्रियाओं व तप का महत्व श्रेष्ठ होता है
साध्वीजी ने कहा, जो प्राणी पर्युषण के दौरान भगवान की आराधना करता है, उसके सभी पाप कर्म दूर हो जाते हैं। इस दौरान की गई धार्मिक क्रियाओं व तप का महत्व भी श्रेष्ठ होता है। एक भी जीव की हिंसा नहीं करना चाहिए। एक पानी बूंद में भी असंख्य जीव होते हंै। कोई करोड़ों रुपए देने पर भी मरने के लिए मनुष्य तैयार नहीं होता है क्योंकि सभी को अपने प्राण प्रिय होते हैं। सभी जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। जीव को बचाने का पुण्य सभी दान से बढक़र है। बिमार होने पर हम डॉक्टर को मुंहमांगा पैसा देते हैं, ये जीवन का मोह है। यदि हममें प्राण देने की शक्तिनहीं है, तो प्राण लेने का अधिकार भी हमें नहीं है। क्रोध को क्षमा के पानी से शांत करना सीखों। दोपहर करीब दो बजे जैन मंदिर में पूजा का आयोजन किया गया। पूजा महिला मंडल द्वारा पढ़ाई गई, जिसमें मंडल की सदस्याओं सहित बड़ी संख्या में समाज की महिलाओं ने सहभागिता की। शाम को भगवान की आरती उतार कर प्रतिक्रमण किया गया तथा रात्रि में भक्ति मंडल द्वारा मूलनायक भगवान आदिनाथ की भक्तिकी गई। पर्व विशेष के अवसर पर आंगी मंडल के सदस्यों द्वारा भगवान की प्रतिमाओं की आकर्षक अंग रचना की गई। जैन समाज की परंपरानुसार पर्युषण के पहले दिन समाजजनों ने अपने-अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रखे और दिनभर धार्मिक क्रियाओं में जुटे रहें। अगले आठ दिनों तक मंदिर और उपाश्रय में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे। प्रतिदिन राजेंद्र उपाश्रय में होने वाले व्याख्यान में बड़ी संख्या में समाजजन जुटेंगे।