तपस्वियों का बहुमानसाध्वीश्री ने कहाकि कल्पसूत्र में 1200 प्रमाण होने से इसे बारसा सूत्र भी कहा जाता है। इसे ध्यान से 21 बार गुरु के मुख से सुनने से अवश्य ही आत्मा का कल्याण होता है। सभी पर्वो में पर्युषण मंत्र में नवकार दान में अभयदान जल में गंगा जल नृत्य में मोर श्रेष्ठ होता है। इस दौरान उपवास करने वाले तपस्वियों का बहुमान जैन श्रीसंघ के सदस्यों ने किया।स्वप्नों की बोलियां लगाईजैन श्रीसंघ पदाधिकारियों ने बताया कि कल्पसुत्र के वाचन के मध्य में दोपहर को भगवान महावीर की माताजी द्वारा देखे गए 14 स्वप्नों की बोलियां लगाई गई। इसमें समाजजनों ने बढ़चढक़र हिस्सा लिया। कल्पसूत्र वोहराने का लाभ रमेशचंद्र रतिचंद परिवार ने लिया।[typography_font:14pt;” >आलीराजपुर. कल्पसूत्र महामंगलकारी है। इसके श्रवण से अनेक विध्नों का नाश होता है। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के भवकालों का सविस्तार वर्णन कल्पसूत्र में है। पूर्व में कल्पसूत्र का वाचन व श्रवण सिर्फ साधु साध्वी मंडल द्वारा ही किया जाता था, लेकिन वर्तमान समय में कल्पसूत्र का वाचन गृहस्थ श्रावकों के मध्य भी किया जाता है। क्योंकि इस पवित्र ग्रंथ के श्रवण मात्र से ही प्राणियों के दुख, पाप और संताप का क्षय हो जाता है। उसे मोक्ष मार्ग की प्राप्ति होती है। यह बात पर्युषण पर्व के चौथे दिन स्थानीय राजेंद्र उपाश्रय में साध्वी शासनलता व समर्पण लता ने कही। पर्युषण पर्व पर स्थानीय श्वेताबंर जैन समाज की ओर से प्रतिदिन धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। शनिवार शाम को प्रतिक्रमण के बाद श्रीसंघ गाजो-बाजों के साथ कल्पसूत्र की बोली लेने वाले लाभार्थी परिवार प्रभावचंद हरकचंद जैन के निवास पर पहुंचा। इसमें बड़ी संख्या में समाजजन शामिल थे। रविवार सुबह लाभार्थी परिवार एवं श्रीसंघ के सदस्य कल्पसूत्रजी को नगर के प्रमुख मार्गो से भ्रमण करवाकर पुन: राजेंद्र उपाश्रय लाए। जहां साध्वीश्री ने इसका वाचन प्रारंभ किया।कल्पसूत्र को ध्यान से सुनने से आठ भवों में मोक्ष मिलता है- ग्रंथ के संबंध में साध्वीद्वय ने कहा कि चातुर्मास में एक जगह रहना स्थिरता का प्रतीक है। जैन दर्शन में कल्पसूत्र ग्रंथ के वाचन की सुव्यवस्थित विधि है। इसका वाचन एवं श्रवण करने वाले जीवात्मा निश्चय ही आठवें भव तक मोक्ष सुख को प्राप्त होते हैं। इस महान पवित्र ग्रंथ में तीर्थंकर जीवन दर्शनए गणधर परंपरा। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक साधुओं के प्रायश्चित कर्म में जड़ का वर्णन है। चातुर्मास काल में किन परिस्थितियों में साधु स्थान का परित्याग कर अन्यत्र जा सकता है। उन स्थतियों का वर्णन कर साधु को स्थान परिवर्तन के अपवाद मार्ग बताए हैं। भगवान महावीर के छठे पट्धर चौदह पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी युग प्रधान हुए। उन्होंने इस ग्रंथ की रचना प्रत्याख्यान प्रवाद नामा पूर्व से दशाश्रुतस्कंध सूत्र के आठवें अध्ययन के रूप में की। साध्वीद्वय ने कहा कि कल्पसूत्र को जो मनुष्य सर्व अक्षरश ध्यान से सुनता है। वह जीव आठ भवो में मोक्ष को जाता है।आज मनाया जाएगा महावीर जन्मोत्सवसोमवार को समाजजन द्वारा हर्षोल्लास पूर्वक 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जन्मकल्याण महोत्सव मनाया जाएगा। इस दौरान भगवान के जन्म से पहले माता त्रिशला द्वारा देख गए 14 स्वप्नों की पुन: बोलिया भी लगाई जाएगी। दोपहर में वरघोड़े व चल समारोह का आयोजन किया जाएगा।