रणविजय सिंह और दर्जनों अन्य याचिकाओं पर सुनवाई कर मुख्य न्यायाधीष डी.बी.भोसले और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पुलिस भर्ती में मेरिट के आधार पर चयन में कोई त्रुटि नहीं है। 2015 की भर्ती में चयन की प्रक्रिया 30 हजार सिपाहियों की भर्ती का सरकार ने पूरा कर लिया था परन्तु भर्ती परिणाम पर रोक के चलते सरकार इन सिपाहियों की भर्ती नहीं कर पा रही थी। कोर्ट के आज के इस फैसले से प्रदेश सरकार को लगभग तीस हजार नये सिपाही मिल जायेंगे।
याचिकाओं में प्रदेश सरकार के पुलिस भर्ती बोर्ड द्वारा वर्ष 2015 में विज्ञापन जारी कर लगभग 30 हजार कांस्टेबल भर्ती को बिना लिखित परीक्षा के भर्ती करने के सरकारी निर्णय को चुनौती दी गयी थी। याचीगण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अषोक खरे, विजय गौतम, सीमांत सिंह आदि ने पक्ष रखा। अधिवक्ताओं का तर्क था कि प्रदेष में 2018 से कांस्टेबल भर्ती लिखित परीक्षा के आधार पर करायी जा रही है। 2013 की 35500 कांस्टेबल भर्ती भी लिखित परीक्षा के आधार पर करायी गयी थी। 2015 में अचानक नियम बदलकर लिखित परीक्षा समाप्त कर दी गयी और मेरिट पर चयन का निर्णय लिया गया। मेरिट पर चयन करना गैरकानूनी और अवैधानिक था।
प्रदेष सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि लिखित परीक्षा कराने की प्रक्रिया लंबी होती है, इसमें चयन में कई वर्ष लग जाते हैं। पूर्व की व्यवस्था में प्री मेडिकल, लिखित और शारीरिक परीक्षा करायी जाती थी। इसमें कई साल लग जाते थे। सिपाही के चयन हेतु जितनी अर्हता होनी चाहिए उतनी इस चयन व्यवस्था में पूरी है। 2017 से सरकार ने सिपाहियों की भर्ती के लिए पुनः लिखित परीक्षा का नियम लागू कर दिया है परन्तु यह लिखित परीक्षा पहले ली जा रही लिखित परीक्षाओं की तुलना में कम समय लेगी।