इलाहाबाद यूनिवर्सिटी रोड पर स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले कपिल गुप्ता कहते हैं दिमाग में तो इलाहाबाद फीड हो गया। इसे प्रयागराज करने में पीढ़ियां लग जाएंगी। मैं नाम बदलने का विरोध नहीं करता लेकिन यह भी सच है कि इसे जुबान तक लाना आसान नहीं होगा। प्रयाग स्टेशन के करीब रिसर्च इंस्टीटयूट के दीपक दुबे कहते हैं हमारे लिए तो प्रयाग पहले से फ्रेंडली है क्योंकि हम तो बचपन से प्रयाग स्टेशन कहते आ रहे हैं। पर बाहर के लोगों के दिमाग में इलाहाबाद बसा है। कागजों में आसानी से नाम बदल जाएगा पर दिमाग में बसने में समय लगता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता मनुवेंद्र सिंह कहते हैं जब युवाओं को नौकरी मिलने लगे, पेट्रोल—डीजल के दाम कम हो जाए, दारागंज, सलोरी, अल्लापुर में सफाई दिखे और मच्छर न काटें तब मैं बदलाव मानूंगा। बाकी हम इलाहाबाद से मोहब्बत करने वाले लोग हैं। नाम कुछ भी कहें हम तो वही जानेंगे। मनुवेंद्र सवाल करते हैं कि आखिर इलाहाबादी अमरूद को क्या कहेंगे। अब प्रयागी अमरूद कहने में तो अच्छा नहीं लग रहा। क्या सरकार इसको भी बदलेगी। वहीं, विश्वविदालय की छात्र राजनीति से जुड़े अजीत यादव कहते हैं यह भाजपा का सियासी हथकंडा है। सरकार अपनी कमियों को छिपाने के लिए ऐसे हथकंडे अपना रही है।