न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश त्रिपाठी ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि उस व्यक्ति ने अपना आपराधिक इतिहास छिपा लिया है, जबकि उसका आपराधिक इतिहास है। वहीं सरकार की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे में भी ये जानकारी दी गयी कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
हाईकोर्ट ने इसी बात को लेकर नाराज़गी जताते हुए सवाल किया कि आखिर कोर्ट के सामने पूरे तथ्य क्यों नहीं लाए गये? कोर्ट ने हलफनामा दाखिल करने वाले सब-इंस्पेक्टर को अगली सुनवाई के दौरान न्यायालय के सामने उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। साथ ही सब-इंस्पेक्टर द्वारा गलत जानकारी देने पर, पुलिस अधीक्षक बदायूँ को कार्रवाई का निर्देश दिया है साथ ही मामले की जांच करने को भी कहा है।
सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि जिला अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (डीसीआरबी) और अपराध व आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (सीसीटीएनएस) की वेबसाइट महाधिवक्ता, सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय तक उपलब्ध नहीं है। यह केवल जिला पुलिस की ही पहुंच में है। सरकारी अधिवक्ता द्वारा दी गयी इस जानकारी के बाद ही हाईकोर्ट ने ये सवाल उठाया और कहा कि आखिरकार किसी नागरिक के आपराधिक इतिहास से संबंधित जानकारी सार्वजनिक डोमेन में क्यों नहीं है और यह पासवर्ड से सुरक्षित क्यों है? कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक को इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि वे बताएं कि इसे कैसे जनता की पहुंच तक बनाया जा सकता है।