मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने राम औतार व अन्य की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। जिला न्यायालय ने राम औतार, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र उर्फ बिशुन चंद को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 302 और 323 केतहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई दी। इसी फैसला को लेकर याची राम औतार ने निचली अदालत से हाईकोर्ट में चुनौती दी।
गवाहों के बयान में दिखा बदलाव इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए गवाहों के बयान पर संदेह जताया और कहा कि घटना जिस दुकानदार के सामने हुई उसकी कोई जांच नहीं की गई। तभी न्यायालय कमी पाया और कहा कि गवाहों के बयान भी आपस में मेल नहीं खा रहे और मेडिकल रिपोर्ट से उसका सामंजस्य नहीं बैठता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अभियोजन पक्ष और प्रतिवादियों के बीच पहले से दुश्मनी रहीं और उन्होंने ट्रक से हुई दुर्घटना को हत्या में आरोपित कर दिया।
1980 में दर्ज था मुकदमा मामले में बाबू नंदन ने अपने भाई राम हरख की हत्या में राम औतार उर्फ बिशुन दयाल, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र के खिलाफ पांच जनवरी 1980 में कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी।