कोर्ट ने मेरठ के सीएमओ के फैसले को नकार दिया है। जिसमें उन्होंने कहा था कि बेटी को शादी के बाद मायके के परिवार में नहीं गिना जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने सीएमओ के आदेश को पलटते हुए कहा कि अब सोच बदलने का समय है। शादीशुदा बेटी भी परिवार की परिभाषा में आती है। इस आधार पर मृतक आश्रित कोटे के तहत पिता की जगह पर शादीशुदा बेटी को भी नौकरी दी जा सकती है।
अरुणा ने दायर की थी याचिका
हाईकोर्ट ने यह आदेश मेरठ की जे ब्लॉक कॉलोनी में रहने वाली अरुणा की याचिका पर दिया है। अरुणा ने चीफ मेडिकल ऑफिसर के 11 दिसंबर 2018 के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें सीएमओ ने मृतक आश्रित कोटे में पिता की जगह अरुणा को नौकरी देने से मना कर दिया था।
हाईकोर्ट ने यह आदेश मेरठ की जे ब्लॉक कॉलोनी में रहने वाली अरुणा की याचिका पर दिया है। अरुणा ने चीफ मेडिकल ऑफिसर के 11 दिसंबर 2018 के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें सीएमओ ने मृतक आश्रित कोटे में पिता की जगह अरुणा को नौकरी देने से मना कर दिया था।
सरकारी अस्पताल में चौकीदार थे अरुणा के पिता
अरुणा के पिता की मौत 4 जुलाई, 2018 को हुई थी। उनकी बेटी ने पूरे परिवार की तरफ से मेरठ के सरकारी अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों को नौकरी की एप्लीकेशन दी थी। जिसमें लिखा था कि पिता के बाद घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई है। मुझे ये नौकरी मुझे दी जाए। जिसे अधिकारियों ने मानने से मना कर दिया और अरुणा को नौकरी नहीं दी।
कोर्ट ने अस्पताल के फैसले को माना संविधान का उल्लंघन
जज विक्रम डी चौहान ने अपने फैसले में कहा कि नौकरी से मना कर सरकारी अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने CMO के आदेश को खत्म करते हुए अरुणा को उनके पिता श्यामलाल की जगह नौकरी देने का आदेश दिया है।
जज विक्रम डी चौहान ने अपने फैसले में कहा कि नौकरी से मना कर सरकारी अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने CMO के आदेश को खत्म करते हुए अरुणा को उनके पिता श्यामलाल की जगह नौकरी देने का आदेश दिया है।