महानिबंधक का कहना है कि पिछले 5 साल में निर्णीत फाइलें अब नही भेजी जाएगी। मालूम हो कि मेरिट पर तय फाइलो के साथ अदम पैरवी में खारिज तमाम याचिकाओं को डिजिटाइजेशन सेंटर भेजा जा रहा है। पुनर्स्थापना की अर्जियां ,फाइल लखनऊ से न आ पाने के कारण सुनी नहीं जा रही है।
डिजिटाइजेशन सेंटर में बेतरतीब रखी फाइलो में से किसी फ़ाइल को ढूंढ निकालना टेढ़ी खीर बनी है। ऐसे में तमाम फाइलों को लखनऊ शिफ्ट करना कोढ़ में खाज साबित हो रहा है। सूत्र बताते हैंकि पिछले महानिबंधक मयंक जैन ने लाखो निर्णीत डिजिटाइज्ड फाइलें लखनऊ भेज दिया है। कारण बताया गया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय मैं फाइलों के रखने की जगह की कमी है। लखनऊ में नए भवन में काफी जगह होने का फायदा उठाया गया है। न्यायालय प्रशासन अपने इस तुगलकी फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहा है। जरूरत पड़ने पर फाइल कैसे आएंगी, कोई उपाय नहीं बताया जा रहा।
महानिबंधक का कहना है कि लखनऊ में बेकार जगह पड़ी है, इसलिए पुरानी निर्णीत फाइले वहां रखवाई गयी हैं। इस सम्बन्ध में विशेष कार्याधिकारी डिजिटाइजेशन सेंटर ही विस्तार में बता सकते है। आगे से ध्यान रखा जा रहा है कि पिछले 5 साल की निर्णीत फाइलें लखनऊ न भेजी जाएं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में 11 मंजिले कार्यालय भवन का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। जिसका कब्जा हाई कोर्ट को तकनीकी वजहों से अभी नही मिल सका है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ जो अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति हैं, उनके कार्यकाल में हाईकोर्ट में निर्णीत मुकदमों की फाइलें डिजिटाइज्ड करने का फैसला लिया गया था। परिसर में सेंटर स्थापित किया गया। एक बडी कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गयी। एक करोड़ पेज प्रतिवर्ष डिजिटाइज्ड करने का लक्ष्य रखा गया।
आनन फानन में फाइलों को सेंटर भेज दिया गया। डिजिटाइज्ड फाइलें आन-लाइन उपलब्ध कराने एवं एक क्लिक पर आदेश या फाइल की नकल मुहैया कराने के मंसूबों के साथ तेजी से काम शुरू किया गया। 45 लाख से अधिक फाइलें डिजिटाइज्ड हो चुकी हैं। इस कार्य की निगरानी तीन जजों की कमेटी कर रही है। दो साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी फाइलें ऑनलाइन उपलब्ध कराने का सपना अधूरा है।
By Court Correspondence