बेरोजगार औद्योगिक कल्याण समिति सहित दर्जनों याचिकाओं की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की खंडपीठ कर रही है । याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ त्रिपाठी ,ए के मिश्र व राघवेन्द प्रसाद मिश्र ने बहस की। इनका कहना है कि केंद्र सरकार ने 1996 में अनुदेशकों की नियुक्ति के लिए सीटीआई प्रमाण पत्र को अनिवार्य कर दिया ।9 दिसंबर 2005 को राज्य सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए सीटीआई प्रमाण पत्र को वरीयता देकर गैर प्रशिक्षित इंजीनियरिंग डिग्री और डिप्लोमा धारकों को भी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होने का मौका दिया। जिसकी वैधता को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। जिसे हाईकोर्ट ने असंवैधानिक घोषित करते हुए आदेश दिया कि केंद्र सरकार द्वारा एनसीवीटी की संस्तुति के आधार पर निर्धारित अर्हता को ही लागू किया जाए। केंद्र सरकार ने अनुदेशको की नियुक्ति में सी टी आई प्रमाणपत्र अनिवार्य किया है। इस फैसले के खिलाफ विशेष अपील भी खारिज हो गई ।
राज्य सरकार ने 2014 में नए नियम बनाएं, जिसमें अप्रशिक्षित डिप्लोमा, डिग्री धारकों को भी नियुक्ति के लिए रास्ता खोल दिया है और साथ ही कहा कि नियुक्ति के 3 वर्ष के भीतर वे सीटीआई पत्र हासिल कर लेंगे। सीटीआई डिग्री की अनिवार्यता को शिथिल करते हुए प्रशिक्षण प्रमाणपत्र धारकों को वरीयता दी गई, इसे याचिकाओं में चुनौती दी गई है।
याची का कहना है कि एनसीवीटी की संस्तुति पर केंद्र सरकार के निर्देशों के खिलाफ राज्य सरकार को अनुदेशकों की नियुक्ति के लिए अर्हता निर्धारण करने का अधिकार नहीं है। साथ ही यह हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भी है।
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