बच्चों के अधिकारों का संरक्षण है पोक्सो न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने आगे कहा कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद-15 के अनुसार, बच्चे को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाना, 1950 और बच्चों के अधिकारों का संरक्षण (पोक्सो) है। हालांकि, समस्या अधिनियम के तहत दायर मामलों की एक बड़ी श्रृंखला किशोरों और किशोरों के परिवारों द्वारा दर्ज की गई शिकायतों/प्राथमिकी के आधार पर उत्पन्न होती है, जो प्रेम संबंधों के तहत दर्ज कराई जाती हैं।
यह अपने आप में दयनीय है – हाईकोर्ट याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि, नि:संदेह नाबालिग लड़की की सहमति का कानून की नजर में कोई महत्व नहीं है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में जहां लड़की ने बच्चे को जन्म दिया है और उसके पहले के बयान में उसने अपने माता-पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया है। और पिछले चार से पांच महीनों से राजकीय बालगृह (बालिका) खुल्दाबाद, प्रयागराज में अपने नवजात बच्चे के साथ सबसे अमानवीय स्थिति में रह रही है, यह अपने आप में दयनीय है।
लड़की और बच्चे रिहा करने का निर्देश राजकीय बालगृह (बालिका), खुल्दाबाद, प्रयागराज के प्रभारी को पीड़ित लड़की को उसके बच्चे के साथ रिहा करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बच्चे को माता-पिता के प्यार और स्नेह से वंचित करना बेहद कठोर और अमानवीय होगा। तथ्य यह है कि आरोपी और नाबालिग पीड़ित दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे और शादी करने का फैसला किया था।
पॉक्सो एक्ट क्या है जानें इस कानून के दायरे में 18 साल से कम उम्र के बच्चों से सेक्सुअल बर्ताव आता है। ये कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस एक्ट के तहत बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से प्रोटेक्ट किया गया है। 2012 में बने इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। पॉक्सो कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी मौजूदगी में करने का प्रावधान है।