गोवध संरक्षण कानून को लेकर कोर्ट ने एक याची रामू उर्फ रहीमुद्दीन के जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि जब कोई गोवंश बरामद किया जाता है तो उसका मेमो तैयार नहीं किया जाता है। जिसके बाद किसी को पता नहीं चल पाता कि बरामदी के बाद उसे कहा ले जाया जाता है। कोर्ट ने कहा है कि गोशाला और गो संरक्षण गृह वाले लोग ऐसे पशुओं को नहीं लेते जो दूध नहीं देते। इस कानून की वजह से मालिक भी डर के मारे इन लोगों को एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं ले जा सकते। इस कारण वह इन्हें सड़क पर छोड़ देते हैं। ये जानवर बाद में किसानों की फसल बर्बाद करते हैं।
ऐसे छुट्टा जानवर चाहे सड़क पर हों या खेत में, समाज को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इनको गो संरक्षण गृह या अपने मालिकों के घर रखे जाने के लिए कोई रास्ता निकालने की आवश्यकता है। जमानत प्रार्थनापत्र पर याची के वकील का कहना था कि याची के खिलाफ प्राथमिकी में कोई विशेष आरोप नहीं है। न ही वह घटनास्थल से पकड़ा गया है। पुलिस ने बरामद मांस की वास्तविकता जानने का कोई प्रयास नहीं किया कि वह गोमांस है अथवा किसी अन्य जानवर का।
कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में जब मांस पकड़ा जाता है तो उसे गोमांस बता दिया जाता है और बरामद मांस को फारेंसिक लैब नहीं भेजा जाता है। आरोपी को उस अपराध में जेल जाना होता है जिसमें सात साल तक की सजा है और विचारण प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है। कोर्ट ने याची की जमानत मंजूर करते हुए उसे निर्धारित प्रक्रिया पूरी कर रिहा करने का आदेश दिया है।