यह आदेश जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस गौतम चौधरी की खंडपीठ ने मोहर पाल और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 4 और 5 उस प्रक्रिया से संबंधित है जहां एक विशेष अधिनियम के तहत अपराध किया जाता है।
यह है पूरा मामला आईपीसी की धारा 420ए, 406 और 120बी के तहत दर्ज एफआईआऱ को रद्द करने की प्रार्थना की थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि सूचना देने वाले ने याचिकाकर्ता क्रमांक 1 से रियायती दरों पर मशीनें ली थीं। याचिकाकर्ता मोहर पाल को सूचना देने वाले के बैंक से रु. 2,03,280/- का बैंक लेनदेन किया गया। हालांकि, बैंक खाते से पैसे दिए जाने के बावजूद सूचना देने वाले को कोई मशीन नहीं दी गई।
इसके बाद कमलेश सिंह, जिसे पैसा भेजा गया था, ने कमीशन काटकर चेक जारी किया। राशि की वसूली नहीं की जा सकी और इसलिए, मुखबिर ने फिर से अपने भाई के साथ दोनों आरोपियों से अनुरोध किया लेकिन उन्होंने परिसर को बंद कर दिया और उपलब्ध नहीं हैं। 2021 में, अदालत ने जांच का निर्देश दिया क्योंकि यह प्रथम दृष्टया पाया गया कि आरोपी द्वारा एक संज्ञेय अपराध किया गया है और आरोप पत्र दायर किया गया था।