कोर्ट ने मित्रा प्रकाशन के मायाप्रेस की अखाड़ा भवन के ध्वस्तीकरण व करोड़ों की चोरी की दर्ज प्राथमिकी की विवेचना की प्रगति रिपोर्ट मांगी है ताकि कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंच सके कि किसी बाहरी एजेंसी या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्ति न्यायाधीश से जांच कराया जाना जरूरी है या नहीं। कोर्ट ने पुलिस के विवेचना तरीके से असंतोष व्यक्त किया है और महाधिवक्ता द्वारा कोर्ट के क्षेत्राधिकार पर उठाय गये सवालों को अस्वीकार कर दिया है। मामले की सुनवाई 16 नवम्बर को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने कोट्स आफ इण्डिया लि. की कंपनी याचिका पर दिया है। मालूम हो कि नया उदासीन पंचायती अखाड़ा का भवन मायाप्रेस के कबजे में था। मित्रा प्रकाशन कंपनी का समापन कर दिया गया। कंपनी की सारी सम्पत्ति को हाईकोर्ट ने अपने आधिपत्य में लेकर ऑफिशियल लिक्वीडेटर को सौंप दी। इसी बीच अखाड़ा के सचिव ने मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी को जर्जर भवन को ध्वस्त कराने का पत्र लिखा। मुख्यमंत्री कार्यालय ने नगर आयुक्त को अवैध निर्माण हटाने का निर्देश दिया। राजनीतिक दबाव के चलते नगर आयुक्त ने कोर्ट की अभिरक्षा में स्थित भवन को बिना अनुमति लिये ध्वस्त करने का आदेश दे दिया।
कोर्ट की सख्ती पर कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने आदेश वापस ले लिया है और उनके अधिकारी ध्वस्तीकरण में शामिल नहीं थे। किन्तु गिरफ्तार दो लोगों के बयान व मौके की सीडी से झूठ पकड़ा गया। निगम के अधिकारी मौके पर मौजूद थे। थाना इंचार्ज ने कहा कि गिरफ्तार दोनों लोगों की रिमाण्ड अर्जी के साथ कोर्ट के आदेश को मजिस्ट्रेट को दिया था। इसे मजिस्ट्रेट ने गलत बताया। कोर्ट को झूठी जानकारी देने पर कोर्ट ने सख्त रूख अपनाया है।
BY- Court Corrospondence