याची के अधिवक्ता जेन अब्बास का कहना था कि याची ने फिजियोलॉजी के पेपर में कम अंक मिलने पर आरीटीआई में अपनी कॉपी मांगी थी। विश्वविद्यालय से कॉपी मिलने पर पता चला कि उसकी उत्तर पुस्तिका में कई प्रश्न जांचे ही नहीं गए हैं और दो उत्तरों में मात्र दो-दो अंक दिए गए हैं। कोर्ट के समक्ष कॉपियां प्रस्तुत की गई तो यची की दलील सही निकली। इस र रानाजगी जताते हुए अदालत ने कहा कि हमें नहीं पता कि विश्वविद्यालय से ऐसी गलती कैसे हुई जिससे किसी छात्र का भविष्य बर्बाद हो जाए। यह वास्तव में हैरान करने वाली बात है। कोर्ट का कहना था कि इस प्रकार की गलती वास्तव में विश्वविद्यालय द्वारा किय गया फ्राड है।
अदालत ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को तलब करते हुए उनको स्पष्टीकरण देने के लिए कहा। कोर्ट ने पूछा कि क्यों न विश्वविद्यालय के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जाए। क्या उनको परीक्षाएं आयोजित करने से रोक दिया जाए ताकि इस प्रकार से छात्रों का भविष्य न बर्बाद हो।
अदालत के निर्देश पर रजिस्ट्रार कोर्ट में उपस्थित हुए। उन्होंने मूल उत्तर पुस्तिका प्रस्तुत की जिसमें वही गलतियां थीं। कोर्ट ने उत्तर पुस्तिका को तीन सेट में अलग-अलग तीन सील बंद लिफाफे में रखकर प्राचार्य मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज को भेजने का निर्देश दिया है। उनको आदेश दिया है कि कॉपियां का फिजियोलॉजी के तीन विशेषज्ञों से अलग-अलग मूल्यांकन कराकर अदालत को सूचित किया जाए।
अदालत ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को तलब करते हुए उनको स्पष्टीकरण देने के लिए कहा। कोर्ट ने पूछा कि क्यों न विश्वविद्यालय के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जाए। क्या उनको परीक्षाएं आयोजित करने से रोक दिया जाए ताकि इस प्रकार से छात्रों का भविष्य न बर्बाद हो।
अदालत के निर्देश पर रजिस्ट्रार कोर्ट में उपस्थित हुए। उन्होंने मूल उत्तर पुस्तिका प्रस्तुत की जिसमें वही गलतियां थीं। कोर्ट ने उत्तर पुस्तिका को तीन सेट में अलग-अलग तीन सील बंद लिफाफे में रखकर प्राचार्य मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज को भेजने का निर्देश दिया है। उनको आदेश दिया है कि कॉपियां का फिजियोलॉजी के तीन विशेषज्ञों से अलग-अलग मूल्यांकन कराकर अदालत को सूचित किया जाए।