यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति डी.के.सिंह की खण्डपीठ ने पंकज सिंह की धारा 372 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दाखिल अपील दाखिल करने की अनुमति अर्जी पर दिया है। कोर्ट ने अर्जी मंजूर कर ली है। अर्जी पर अधिवक्ता दिलीप कुमार व अजय श्रीवास्तव ने बहस की। यह अपील अपर सत्र न्यायाधीश गाजीपुर के 24 जुलाई 18 के आदेश के खिलाफ दाखिल की गयी है। भावरकोल थाना क्षेत्र में 1991 में हुई हत्या केस में बृजेश सिंह व अन्य आरोपी को कोर्ट ने बरी कर दिया जिसे चुनौती दी गयी है।
याची का कहना है कि गोलीबारी की घटना में पांच घायल हो गये और तीन की मौत हो गयी थी। चश्मदीद गवाह जारनाथ सिंह को गोली लगी थी। अधीनस्थ न्यायालय ने इसकी अनदेखी कर आरोपियों को बरी कर दिया है। हालांकि आरोपी चौबीस साल फरार रहने के बाद 2008 से जेल में बंद है। उनके खिलाफ दर्ज 28 आपराधिक मामलों में 20 में हत्या के आरोप है। पुलिस ने 1991 में चार्जशीट दाखिल की। जनवरी 2008 में दिल्ली की स्पेशल टास्क फोर्स ने उड़ीसा से आरोपी को गिरफ्तार किया। जारनाथ ने हाईकोर्ट से विचारण ठीक से न होने की शिकायत की थी।
कोर्ट ने सभी गवाहों के बयान दर्ज करने के आदेश भी दिये थे। इसके खिलाफ एसएलपी खारिज हो गयी। चश्मदीद गवाहों के बावजूद कोर्ट ने हत्या के आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट के निष्कर्ष भी विरोधाभासी है। इस पर कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और अधीनस्थ न्यायालय की पत्रावली तलब कर पेपरबुक तैयार करने का निर्देश दिया है।
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