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पिछले विधानसभा चुनाव में अधिकतर सीटों पर भाजपा को मिली थी हार 

locationप्रयागराजPublished: Jan 16, 2017 03:10:00 pm

Submitted by:

sarveshwari Mishra

क्या दोहरा पाएगी लोकसभा चुनाव की रिजल्ट

Bhartiya janta party

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इलाहाबाद. इलाहाबाद जिले की 12 विधानसभा सीटों में 8 बीते 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के पाले में गयी थीं। जिनमें मेजा, बारा, फूलपुर, सोरांव, हंडिया, फाफामऊ, इलाहाबाद दक्षिण और प्रतापपुर शामिल हैं। जबकि शहर पश्चिमी, करछना और कोरांव सीट पर बसपा को जीत मिली थी। वहीं, एकमात्र सीट शहर उत्तरी कांग्रेस को मिली थी। उत्तर से अनुग्रह नारायण सिंह ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की।




आगामी विधानसभा चुनाव में चौथे चरण में 23 फरवरी को इलाहाबाद में वोट डाले जायेंगे।आपस में लड़ रहे सपाई यहां पुराने रिकॉर्ड को बचाना चाहेगे। पिछली बार सपा के खाते में आठ सीटें आई थीं। कई सीटों पर टिकट बदल बसपा अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की जद्दोजहद में है। तो भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव की सफलता दोहराने की चुनौती होगी। कांग्रेस फिलहाल इकलौती सीट के लिए भी संघर्षरत नजर आ रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इलाहाबाद, फूलपुर एवं चायल तीनों सीटें भले ही जीती हों लेकिन 2012 के विस चुनाव में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। शहर उत्तरी एवं दक्षिणी तथा बारा जैसी भाजपा की परम्परागत सीटें भी हाथ से जाते रहीं। यहां भाजपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे। पांच साल बीतने के बाद जिले के हालात बदले बदले नजर आ रहे हैं। बारा से सपा विधायक डॉ. अजय कुमार भाजपा का दामन थाम चुके हैं। मोदी के चेहरे के आलवा यह है की भाजपा इसलिए भी उत्साहित है। क्योंकि हर सीट पर उसके पास प्रत्याशियों की लंबी कतार है।



भाजपा के लिए कई चुनौती
शहर की बात करें तो इलाहाबाद उत्तर और दक्षिण में भाजपा के परंपरागत वोटरों की तादाद अच्छी खासी है। ऐसे में खाता न खुलना पार्टी के बड़ा झटका था। हालांकि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज करके हिसाब बराबर कर लिया, लेकिन विधानसभा चुनाव में माहौल और मुद्दे दोनों अलग हैं। इलाहाबाद की सियासत पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष नारायण कहते हैं लोकसभा चुनाव में 10 साल की यूपीए सरकार के खिलाफ एंटी इंक्बैसी थी, जिसका फायदा मोदी के चेहरे के कारण भाजपा को मिला था। लेकिन विधानसभा चुनाव में लड़ाई सपा, बसपा और भाजपा की है। कांग्रेस भी अपना अस्तित्व बचाने की कोशिश में है। 



प्रदेश के चुनाव में मुद्दे अलग हैं। दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम सामने हैं। जहां भी क्षेत्रीय दल मजबूत हैं वहां भाजपा की लड़ाई बहुत टेढी है। इलाहाबाद के मतदाता को पॉलिटकली बहुत मैच्योर माना जाता है, इसलिए बहुत सोच-समझकर वोटिंग करता है। दूसरी ओर, भाजपा के क्षेत्रीय मंत्री और पूर्व विधायक प्रभाशंकर पांडेय कहते हैं, मुद्दे भले अलग हों लेकिन नीतियां वहीं हैं जो देश के लिए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के काम और विकास के मुद्दे पर भाजपा मैदान में है। वोटर सपा, बसपा से ऊब चुका है। जाति, धर्म जैसे नारे नहीं चलेंगे। प्रदेश की जनता भी विकास चाहती है इसलिए बदलाव तय है।

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