चेंज डॉट ओआरजी (www.change.org) पर राष्ट्रपति के नाम शुरू किए सिग्नेचर कैंपेन से अब तक करीब 1400 लोग इस फैसले का विरोध कर चुके हैं। शालिनी सिंह लिखती हैं सत्तारूढ़ दलों के हिसाब से शहरों का नाम बदलना चाहिए। इससे ज्यादा जरूरी चीजें हैं, करने के लिए। वहीं,धर्मेश चौबे लिखते हैं, इलाहाबाद इश्क़ का शहर है, प्रयाग किसी अजनबी का। और हम इश्क़ को अजनबी नहीं होने देंगे।
सरकार के पास और भी बहुत काम हैं
आयुष श्रीवास्तव लिखते हैं हम इलाहाबादी हैं और हमें यह टाइटल पसंद है। नुरूल हुदा ने कहा मैं इलाहाबादी हूं। पूर्णिमा लामेचा सवाल करती हैं कि नाम बदलने से क्या होगा। सत्तारूढ़ दल को समझना चाहिए कि उनके पास करने के लिए और भी रचनात्मक काम हैं।
मैं इसे इसी नाम से जानती हूं
आयुष लिखते हैं, इलाहाबादी नाम नहीं, पहचान है। कुछ बदलना है तो शहर का विकास करिए, इससे शहर को फायदा होगा। वहीं, लीला सक्सेना का कहना है कि यह मेरा आधिकार है। शहर मेरा है। मैं इसे इसी नाम से जानती हूं। अभिनव सिंह कहते हैं, मैं इलाहाबाद में पैदा हुआ, इसी शहर में पला बढ़ा। इसका नाम बदलने के लिए केवल राजनीतिक एजेंडा ही है। इश्तर घोष लिखती हैं कि शहर का नाम न बदलिए। बतादें की यूपी की योगी सरकार जल्द ही इलाहाबाद को प्रयागराज का नाम देने जा रही है।