scriptफूलपुर-गोरखपुर उपचुनाव: सपा-बसपा के सियासी गठबंधन और कम वोटिंग से बेचैन बीजेपी | Gorakhpur Phulpur By Election Exit Poll Before Result | Patrika News

फूलपुर-गोरखपुर उपचुनाव: सपा-बसपा के सियासी गठबंधन और कम वोटिंग से बेचैन बीजेपी

locationप्रयागराजPublished: Mar 13, 2018 07:58:54 pm

सियासत के जानकार बताते हैं कि कम वोटिंग प्रतिशत से प्रभावित हो सकते हैं नतीजे, जीत-हार का कम हो सकता है अंतर।

Akhilesh mayawati yogi and Keshav Maurya

अखिलेश मायावती योगी और केशव मौर्य

इलाहाबाद. क्या कम वोटिंग फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव में बीजेपी के लिये नुकसानदेह साबित होने वाली है ? क्या इससे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन को खुश होना चाहिये ? क्या सीएम योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में और डिप्टी सीएम केशव मौर्य फूलपुर में अपनी साख नहीं बचा पाएंगे ? उपचुनाव के वोटों की गिनती का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, ये सवाल सियासी गलियारों से निकलकर लोगों की जुबान जद हो गए हैं। बदले हुए वोटिंग पैटर्न के चलते राजनीतिक पंडितों के लिये भी सियासी समीकरण का जोड़-घटाव मुश्किल हो गया है। एग्जिट पोल के नाम पर गोरखपुर और फूलपुर की सियासत को नजदीक से जानने वाले जो बता रहे हैं उसमें बड़े उलटफेर की संभावना प्रबल है।

गोरखपुर संसदीय सीट की बात सबसे पहले। ये वही सीट है जहां बीजेपी को जीत की सबसे ज्यादा उम्मीद है। इसके पीछे बड़ी वजह ये है कि ये भाजपा का सबसे मजबूत किला कहा जाता है। इस किले को बनाने का श्रेय वर्तमान मुख्यमंत्री और गोरखपुर सीट के सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को जाता है। योगी भले चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ते रहे हों पर उनकी अपनी सेना हिन्दू युवा वाहिनी का इसमें बड़ा रोल रहा है। उन्होंने इस दुर्ग को अजेय बनाने में काफी मेहनत की। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें सीट छोड़नी पड़ी। पहला उपचुनाव है जिसमें कहा जा रहा है कि कैंडिडेट सीएम योगी के खेमे का नहीं है। भले ही न हो बावजूद इसके साख दांव पर योगी की ही लगी है।

जब तक गोरखपुर सीट पर सीएम योगी आदित्यनाथ सांसद होते थे वह उन्होंने तकरीबन हर चुनाव रिकॉर्ड वोटों से जीता। पांच बार लगातार सांसद चुने गए। 2014 में जब वह आखिरी बार इस सीट पर सांसदी जीते थे तो उस समय 54.67 प्रतिशत वोटिंग हुई थी और उन्होंने 10 लाख 40 हजार 822 में से अकेले योगी ने 51.80 प्रतिशत यानि पांच लाख 39 हजार 27 वोट पाए थे। इस बार वोटिंग पिछले के मुकाबले महज 49 प्रतिशत वोटिंग हुई, जो 2014 के मुकाबले करीब पांच फीसद कम है। वोटिंग परसेंटेज में भले ही बहुत अधिक फर्क न आया हो पर इस बार समीकरण अलग हैं।
बसपा, निषाद पार्टी,पीस पार्टी, रालोद और वाम दलों ने सपा को समर्थन दिया है। सपा ने यहां जातीय समीकरण को देखते हुए निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को टिकट दिया है। याद रहे कि 2014 में भी सपा-बसपा ने निषाद प्रत्याशी पर ही दांव खेला था। इस बार कांग्रेस को छोड़ ये सारे दल बीजेपी को हराने को मिल गए। हालांकि सपा बसपा और अन्य दलों ने 2014 में मिलकर भी उतना वोट नहीं पाया था जितना अकेले योगी आदित्यनाथ को मिला था। बावजूद इसके इस बार लड़ाई कांटे की दिख रही है। सियासी जानकार बता रहे हैं कि जिस पैटर्न पर वोटिंग हुई है उससे बीजेपी की चिंता जायज है।

इसी तरह सियासी जानकार फूलपुर में भी स्थिति बीजेपी के लिये थोड़ी दिक्कत ही बता रहे हैं। हालांकि जीत हार का दावा तो कोई नहीं कर रहा है। पर वोटिंग में यहां भारी गिरावट भाजपा के लिये परेशानी का सबब है। फूलपुर उपचुनाव के मतदान में महज 38 प्रतिशत वोटिंग हुई। जबकि 2014 के उपचुनाव में यहां 52.14 वोटिंग हुई थी। इसमें से भी अकेले बीजेपी प्रत्याशी वर्तमान डिप्टी सीएम केशव मौर्य को 51.80 फीसद वोट मिले थे।
सपा-बसपा दोनों मिलकर भी उस आंकड़े से काफी दूर थे। यहां केशव मौर्य की साख दांव पर है। ओबीसी वोटों की अधिकता और उसमें भी पटेल वोट आगे होने के चलते बीजेपी ने बनारस के पूर्व मेयर कौशलेन्द्र सिंह पटेल को और सपा ने नागेन्द्र सिंह पटेल को मैदान में उतारा है। हालांकि इन आंकड़ों से बीजेपी खौफ में है, पर निर्दली चुनाव लड़ रहे बाहुबली अतीक के फैक्टर से बीजेपी को उम्मीद है। अतीक जितना वोट पाएंगे वह सपा का आंकड़ा कम करेगा। मुस्लिम वोट बंटने से भाजपा को फायदा होने की उम्मीद है।

उपचुनाव में जो वोटिंग पैटर्न रहा वो 2014 से काफी अलग रहा। इस बार बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में ही वोटिंग कम हुई। गोरखपुर में तो शहरी इलाकों में स्थिति कुछ ठीक रही पर फूलपुर में ऐसा नहीं था। ग्रामीण इलाकों में बम्पर वोट पड़े, पर शहरी क्षेत्र में खासतौर से उन इलाकों में जहां बीजेपी का स्ट्रॉंग होल्ड माना जाता है मतदान उम्मीद से काफी कम रहा। ऐसे में जहां सपा गठबंधन खेमे में खुशी है तो वहीं सत्ताधारी दल में बेचैनी लाजिमी है।
दरअसल इन दोनों सीटों पर बीजेपी को हर हाल में जीत चाहिये क्योंकि त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में मिली जीत का बना-बनाया माहौल बिगड़ सकता है, जिसका 2019 के लोकसभा चुनाव में हिंदी पट्टी पर बड़ा असर पड़ सकता है। उधर अगर सपा-बसपा का गठबंधन जीता तो 2019 में यूपी में बीजेपी को बड़ी टक्कर मिलेगी। कुछ ही घंटों में यह साफ हो जाएगा कि मतदाताओं ने उपचुनाव में किस पर भरोसा जताया है। पर तब तक सियासी आंकलन और अनुमान का दौर लगातार जारी है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो