कोर्ट ने राज्य सचिवालय के न्यायिक अधिकारियो व जिलाधिकारी के कार्यप्रणाली की तीखी आलोचना की है और कहा है कि न्यायिक अधिकारियो, जिनपर सरकार को सही क़ानूनी सलाह देने का दायित्व है,ने कानून के खिलाफ कार्य करने में सहयोग दिया।
बलिया के पूर्व सरकारी वकील सन्तोष कुमार पांडेय की याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति पी के एस बघेल तथा न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खंडपीठ ने कानून मंत्री के आदेश पर मनमाने ढंग से की गयी नियुक्ति रद्द कर दी। 14 लोगो को 14-14 दिन की ड्यूटी के आधार पर सरकार ने सरकारी वकील नियुक्त किया था। ऐसा करने में क़ानूनी प्राक्रिया की पूरी तरह से अनदेखी की गयी।
कोर्ट ने कहा सरकार में न्यायिक अधिकारियो की नियुक्ति सरकार को सही सलाह देने के लिए की गई है। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलो के बावजूद पारदर्शिता, फेयरनेस को दरकिनार कर मनमाने ढंग से सरकारी वकील बना दिया गया।
कोर्ट ने कहा अनुभवी व् योग्य वकीलो को सरकारी वकील नियुक्त करने से न्यायिक फैसलो की गुणवत्ता अच्छी होता है। वही अयोग्य व अनुभवहीन वकीलों की नियुक्ति से न्यायिक मूल्यों को नुकसान पहुचता है।ऐसे में योग्य अनुभवी वकीलो की नियुक्ति की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा हाई कोर्ट में भी सरकार ने एक झटके में सरकारी वकीलो को हटा दिया और नया पैनल जारी किया।जो कोर्ट को सही वैधानिक सहयोग नही दे पा रहे है। कानून मंत्री ने जिला जज के परामर्श से जिलाधिकारी द्वारा भेजी गयी सूची को दरकिनार कर मनमानी नियुक्ति का आदेश दिया। जिसे चुनौती दी गयी थी। कोर्ट के फैसले से सरकार को झटका लगा है।
BY- Court Corrospondence