धर्मातरंण अध्यादेश काे हाईकाेर्ट में चुनाैती, याचिकाकर्ता ने कहा अनुच्छेद 21 पर सीधा हमला है यह कानून
हाईकाेर्ट में दाखिल एक पीएलआई में याचिकाकर्ता ने कहा है कि अनुच्छेद 25 किसी भी व्यस्क जोड़े को अपनी मर्जी के अनुसार शादी करने का अधिकार देता है और अगर शादी के तुरंत बाद एक साथी अपना धर्म बदल लेता है तो इसमें राज्य को चिंतित नहीं होना चाहिए

पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क
इलाहाबाद. यूपी सरकार के चर्चित धर्मांतरण अध्यादेश को हाईकोर्ट में चुनाैती दी गई है। हाईकोर्ट में दखिल एक जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह अध्यादेश अंतर धार्मिक विवाह के अपराधीकरण के अलावा कुछ भी नहीं है।
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दरअसल हाईकोर्ट में पिछले दिनाें एक पीएलआई दाखिल की गई थी और इस पीएलआई में उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश अंतर धार्मिक विवाह की मूल भावना का विरोध करते हुए कहा गया था कि '' यह अध्याधेश अनुच्छेद 21 पर प्रत्यक्ष हमला है जाे किसी भी व्यस्क जाेड़े काे स्वतंत्रता और जीवन जीने की सुरक्षा प्रदान करता है।
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पिछले सप्ताह इस मामले पर सुनवाई हुई थी तो उस दौरान सरकार ने अपने अध्यादेश का यह कहते हुए बचाव किया था कि इस अध्यादेश का उद्देश्य गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरन खरीद-फरोख्त विवाह आदि द्वारा किए गए गैरकानूनी धर्मांतरण को रोकना है। दरअसल सरकार ने एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ विवाह के बाद एक हिंदू लड़की के धर्म परिवर्तन को बलपूर्वक धर्मांतरण के उदाहरण के रूप में दर्शाया था और कहा था कि ऐसे मामलों में जो धर्मांतरण होता है वह बलपूर्वक होता है ना की इच्छा पूर्वक। ऐसे धर्मांतरण मजबूरी में किए जाते हैं जो अपराध की श्रेणी में आते हैं। यह भी कहा गया था कि पर्सनल लॉ भी ऐसे अंतर धार्मिक विभाग को नहीं मानता है।
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राज्य सरकार की ओर से दिए गए इस जवाब में अपना पक्ष रखते हुए अधिवक्ता सौरभ कुमार की ओर से दिए गए हलफनामें में कहा गया है कि सरकार का यह अध्यादेश अंतर धार्मिक विवाह के अपराधीकरण के लिए कानूनी स्वीकृति के अलावा और कुछ नहीं है। यह भी कहा गया कि सरकार का यह अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 21 पर हमला है जो किसी भी व्यक्ति को स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार की सुरक्षा देता है 18 जनवरी को अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की अगुवाई वाली एक खंडपीठ के समक्ष सुना जाएगा।
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