सीजेआई ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर पेड़ों को बरकरार रखना है यानी न काटना है, तो ऐसी सड़कों का निर्माण करना होगा, जो सीधी न हों। सीधी सड़कें उच्च गति वाले यातायात में सक्षम हैं। ऐसा प्रभाव जरूरी नहीं है क्योंकि राजमार्गों की उच्च गति दुर्घटनाओं का कारण जानी जाती हैं। सीजेआई ने अधिकारियों से यह भी कहा कि वे अपने शेष जीवन काल में पेड़ों द्वारा जो ऑक्सीजन पैदा करेंगे, उसका ध्यान में रखते हुए पेड़ों के मूल्य का मूल्यांकन करें।
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय से आग्रह किया था कि जिला मजिस्ट्रेट उचित योजना तैयार करने तक पेड़ों को काटने की अनुमति न दें। आगे कहा कि इस तरह की सड़कों के निर्माण में रास्ते में आने वाले पेड़ों को काटने की बजाय तकनीक के माध्यम से सड़क का विकास किया सकता है। याचिकाकर्ताओं द्वारा टीएन गोदावरमन थिरुमुलपाद बनाम भारत और अन्य (2013) 11 SCC 466 के उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन करने की मांग की गई। इस मामलें में कोट ने कहा था कि एक पेड़ को काटने पर उसे दो पेड़ काटने जैसा माना जाएगा।
सुनवाई के लिए मामला सूचीबद्ध
पिछले साल दिसंबर में हाईकोर्ट ने उत्तरदाताओं को निर्देश दिया था कि वह प्रयागराज से अन्य शहरों के लिए जाने वाली सभी सड़कों की एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करें। चाहे वह राष्ट्रीय राजमार्ग हो या राज्य राजमार्ग यह इंगित करने के लिए कि सड़क या डिवाइडर पर दोनों ओर कितने पौधे/पेड़ लगाए गए हैं, क्योंकि विकास क्षेत्र के साथ पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए नियम का अनुपालन अनिवार्य है। जब इस मामले को मंगलवार को उठाया गया, तो बेंच ने राज्य सरकार और एनएचएआई को कोर्ट के निर्देश का निष्पादन करने के लिए कुछ और समय की अनुमति दी। सरकार ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि राज्य में किसी भी परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए एनएचएआई को कोई अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि वृक्षों की क्षतिपूर्ति करने के लिए लागू मानदंडों के अनुसार वृक्षारोपण की पूरी योजना प्रस्तुत नहीं की जाती है। यह मामला अब 3 फरवरी, 2021 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।