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सलाखों के पीछे से नामांकन करने वाले इस दिग्गज नेता को चुनाव के बीच करना पड़ा रिहा

locationप्रयागराजPublished: May 03, 2019 08:12:15 pm

माटी के टीले पर खड़े हो कर देश की सत्ता को ललकारा

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lok sbha 2019

प्रसून पाण्डेय

प्रयागराज। जिले की सियासत की बात हो और जनेश्वर को यहाँ के लोग याद न करें ये हो नहीं सकता। भले ही छोटे लोहिया प्रधानमंत्री न बने हो लेकिन उनकी लोकप्रियता शहर से प्रधानमंत्री बनने वाले नेताओं से कम नहीं रही ।छोटे लोहिया देश के उन नेताओं में से एक है। जिनके नाम की सौगंध खा कर नेताओं ने मंचो से बड़े -बड़े वादे किए । देश भर में छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्रा हर दिल अजीज रहे । उनकी पार्टी के साथ ही दूसरे राजनीतिक दल के नेता भी उनका सम्मान किया करते थे। एक समय रहा की इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से निकलने वाले जनेश्वर मिश्रा का क्रेज युवाओं में जबरदस्त था।

जब सलाखों के पीछे से नामांकन किया
जनेश्वर मिश्रा के करीबी रहे अजीत सिंह से पत्रिका ने बात की अपने नेता छोटे लोहिया को याद करते हुए अजीत सिंह कहते है कि एक दौर वह भी था कि जब 1967 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जेल से नामांकन किया था। उस समय की सरकार को बीच चुनाव में जनेश्वर मिश्रा को रिहा करना पड़ा था। उनकी रिहाई की खबर रिहा मिलते ही उन्हें देखने वालों की भीड़ कई हजारों में थी।1967 में जनेश्वर मिश्र छात्र आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण सलाखों के पीछे डाल दिए गए। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर फूलपुर से नामांकन किया था। उनका मुकाबला कांग्रेस की उम्मीदवार और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित से था। जनेश्वर मिश्रा सलाखों के पीछे से नामांकन किए। जेल से नामांकन करने को लेकर युवाओं में उनके प्रति उत्साह था।

जब पंडित नेहरू की विरासत जाने का डर
छात्र आंदोलन से जुड़े होने के नाते इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हजारों युवा उनके प्रचार.प्रसार में जुट गए। जनेश्वर मिश्रा का चुनाव पहला ऐसा चुनाव था जिसमें इतनी बड़ी संख्या में युवा बढ़.चढ़कर हिस्सा ले रहे थे।इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े सभी छात्र संगठनों के लोग जनेश्वर मिश्रा का झंडा उठाकर चल रहे थे। अजीत सिंह बताते हैं कि कई बार ऐसा होता था,जब विजयलक्ष्मी पंडित की सभा में जनेश्वर की रिहाई को लेकर नारेबाजी होने लगती थी।कांग्रेस के दिग्गज नेताओं लगने लगा थी की अब पंडित नेहरू की विरासत नही बचेगी। लेकिन ऐसा नही हुआ। कई बार विजय लक्ष्मी पंडित को बीच में अपना भाषण रोकना पड़ता था।विजय लक्ष्मी पंडित की सभाओं में लगातार विरोध को देखते हुए सरकार को जनेश्वर मिश्रा करना पड़ा।

दिग्गजों से ज्यादा मिलती थी तवज्जो
जनेश्वर मिश्रा जेल से रिहा हुए तो देखने वालों का हुजूम टूट पड़ा।क्या बूढ़े क्या बच्चे और महिलाएं हर कोई जनेश्वर मिश्रा की एक झलक पाने को बेताब था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्राएं हजारों की संख्या में उस काफिले में शामिल थी। रिहाई की खबर पर बड़ी संख्या में लोग नैनी जेल पहुंचे। जनेश्वर मिश्रा को रिहा करा कंधे पर बैठा कर बाहर निकले। अजीत सिंह कहते हैं कि जनेश्वर मिश्रा बेबाक वक्ता दृढ निश्चय करने वाले नेता थे। इसी के चलते उन्हें छोटे लोहिया कहा गया। उनके भाषण को सुनने के लिए दूर.दूर से लोग आया करते थे।कई बार मंच पर उस समय के दिग्गज नेता बैठे होते थे। लेकिन सबसे पहले जनेश्वर मिश्रा को माइक दिया जाता था।

जब माटी के टीले से सरकार को ललकारा
जनेश्वर मिश्रा के लगोटिया साथी रहे शिव प्रसाद मिश्रा बताते है कि एक बार नवाबगंज विधानसभा के अंतर्गत आनापुर गांव में चुनावी सभा चल रही थी। जनेश्वर मिश्रा के भाषण के बीच बिजली कट गई जनरेटर की उस वक्त व्यवस्था नहीं थी। लाउडस्पीकर बंद हो गया। जनेश्वर मिश्रा मिट्टी के टीले पर चले गए और जोर जोर से बोलने लगे जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री पर हर दिन 75 हजार खर्च होते हैं। जबकि एक 25 हजार में स्थापित हो जाता है। प्रधानमंत्री जा रहे हैं इतना सुनते ही वहां खड़े हजारों युवाओं ने उन्हें उठा लिया। हालांकि विजय लक्ष्मी पंडित से यह चुनाव जनेश्वर मिश्रा हार गए लेकिन इस चुनाव में जनेश्वर मिश्रा को स्थापित कर दिया था।

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