याचिका का प्रतिवाद राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता विनोदकांत व एजीए नीरज कांत ने किया। याचिका में भाटपार रानी थाने में 5 फरवरी 19 को दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गयी थी। याची का कहना था कि आपत्तिजनक पोस्ट उसने नहीं की है, उसके फोन पर आयी पोस्ट को अनजाने में उसके नाबालिग बेटे ने फारवर्ड कर दिया है। इसमें कोई दुर्भावना नहीं हैं वैसे भी पोस्ट किसी धर्म, जाति या समुदाय के विरुद्ध नहीं है। इसलिए कोई अपराध नहीं बनता।
याची के फेसबुक पोस्ट में…..(लिखा नहीं जा सकता) दिखाया गया है और ऊपर लिखा है कि ‘वाणी संतुलन के लिए होम्योपैथिक दवा’ जिस पर यह एफआईआर दर्ज की गयी है। राज्य सरकार की तरफ से कहा गया है कि मुख्यमंत्री धर्मगुरू है और पहनावा भी मंदिर के पुजारी का है। यह पहनावा हिन्दू धर्म के संतों द्वारा पहना जाता है। इस पोस्ट से धार्मिक भावना को भड़काने की कोशिश की गय है जिसे भारी संख्या में लोगों ने देखा होगा। यह नहीं कह सकते कि कोई अपराध नहीं बनता। नाबालिग द्वारा पोस्ट फारवर्ड करने के तथ्यात्मक बिन्दु पर हाईकोर्ट विचार नहीं कर सकती। यह विवेचना में आने वाले साक्ष्यों पर निर्भर है। जिस पर ट्रायल के समय विचार किया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने दर्ज प्राथमिकी पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
By Court Correspondence