1937 के चुनाव में विजयलक्ष्मी उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने भारत की प्रथम महिला मंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्री स्तर का दर्जा पाने वाली भारत की वह प्रथम महिला थीं। Vijayalaksmi Pandit 1937 में ही ब्रिटिश इंडिया के यूनाइटेड प्रोविन्सेज में कैबिनेट मंत्री बनी थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ होने के बाद मंत्रिपद छोड़ते ही विजयलक्ष्मी पण्डित को फिर बन्दी बना लिया गया।
जेल से बाहर आने पर 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में वे फिर से गिरफ्तार की गईं, लेकिन बीमारी के कारण नौ महीने बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया। आज भी ‘गांधी परिवार’ की औरतों ने राजनीति में अपनी धमक हमेशा बनाई रखी है।
विजया नेहरू से 11 साल छोटी और बहन कृष्णा से सात साल बड़ी थीं। इन्होंने अपनी पढ़ाई इलाहाबाद से शुरू की। बाद में नेहरू के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ी। पहले पिता मोतीलाल नेहरू और बाद में भाई जवाहरलाल नेहरू के साथ राजनीति में सक्रिय रहीं। विजया हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं, रिहा होतीं और फिर से आन्दोलन में जुट जातीं।
विजया, नेहरू और इंदिरा राजनीति में इतने वैरायटी के पोस्ट संभाले, जो लोगों को हैरान कर देते हैं। 1937 से 1939 तक यूनाइटेड प्रोविन्सेज में ‘लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट’ और ‘पब्लिक हेल्थ’ का डिपार्टमेंट संभाला। दोनों ही डिपार्टमेंट गुलाम भारत में आज के भारत की नींव रख रहे थे। 1946 में संविधान सभा में चुनी गईं। औरतों की बराबरी से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी और बातें मनवाईं। आजादी के बाद 1947 से 1949 तक रूस में राजदूत रहीं. ये दौर भारत के लिए बड़ा सनसनीखेज था। क्योंकि सुभाषचंद्र बोस के रूस में होने की अफवाह उड़ती रहती। अगले दो साल अमेरिका की राजदूत रहीं।
1953 में यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। मतलब पहली औरत, जो वहां तक पहुंची भारत का सिक्का जमाने। 1953 में यूएन जनरल असेंबली की प्रेसिडेंट रहीं। मतलब पहली औरत, जो वहां तक पहुंची भारत का सिक्का जमाने। 1955 से 1961 तक इंग्लैंड, आयरलैंड और स्पेन में हाई कमिश्नर रहीं। 1962 से 1964 तक महाराष्ट्र की गवर्नर रहीं। 1964 में नेहरू का निधन हुआ। और विजया नेहरू के क्षेत्र फूलपुर से लोकसभा में चुनी गईं।
यहां तक सब कुछ होने के बाद नेहरू की बहन होने के नाते ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा था कि विजया प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हो सकती हैं। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि इंदिरा गांधी से इनकी नहीं बनती थी।
जब विजया ने हुसैन से किया था प्यार
हुसैन के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। हुसैन वह थे जिन्हें 19 साल की विजया अपना दिल दे बैठी थी। उस समय विजया के पिता मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद में अखबार चलाते थे। 1919 में इस अखबार के एडिटर के लिए उन्होंने सैय्यद हुसैन नाम के लड़के को बुलाया। अपने समय में हुसैन जैसा बोलने वाला कोई नहीं था। हुसैन ने अमेरिका में जाकर गांधी पर लेक्चर देकर इंडिया का डंका बजा दिया था।
गांधी के भक्त हुसैन ने 1922 में हुसैन ने इलाहाबाद छोड़ दिया। उस समय गांधी ने खिलाफत आन्दोलन का प्रवक्ता बनाकर हुसैन को इंग्लैंड भेज दिया। लेकिन अफवाह उड़ती रहती कि दोनों ने शादी कर ली है।
सईद नकवी अपनी किताब ‘बीइंग द अदर्स’ में अपने अंकल वसी नकवी, जो रायबरेली से थे और 50 के दशक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चंद्र भान गुप्ता के हवाले से बताते हैं कि उस समय के सबसे बड़े आदमी, भारत की एकता के प्रतीक महात्मा गांधी भी इस रिश्ते के खिलाफ थे। उनको लगता था कि इससे आन्दोलन पर बुरा असर पड़ेगा। शायद इंडिया में हर आदमी अपने घर में कम्युनल हो जाता है। उस समय विजया की शादी महाराष्ट्र के एक ‘ब्राह्मण’ से कर दी गई। जो तीन बच्चों के बाद 1944 में दुनिया छोड़ गए।
हुसैन से नेहरू का रिश्ता खत्म हुआ नहीं था। नेहरू की रिश्ते रखने की आदत शायद बेहद शानदार थी। उन्होंने हुसैन को मिस्र का राजदूत बना के भेज दिया। कहते हैं कि विजया और हुसैन एक-दूसरे को भूल नहीं पाए थे। कभी-कभी मिल लेते थे। उस समय इंटरनेशनल मीडिया में इस बात की बड़ी चर्चा होती थी। मिस्र में ही हुसैन की मृत्यु हो गई। उनके नजदीकी लोग कहते थे कि हुसैन एक टूटे हुए दिल के साथ मरे थे। अपनी उदास जिंदगी को वे शानदार अंदाज में जीते थे।
विजयलक्ष्मी पण्डित देश-विदेश के अनेक महिला संगठनों से जुड़ी हुई थीं। अंतिम दिनों में वे केन्द्र की कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना करने लगी थीं। वर्ष 1990 में इनका निधन हो गया।