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सैकड़ों साल से चली आ रही यह प्रथा, जहां भक्तों से खुद मिलने आती हैं मां काली

locationप्रयागराजPublished: Sep 28, 2017 07:03:49 am

Submitted by:

sarveshwari Mishra

मां ‘काली स्वांग’ के रौद्र स्वरुप का भी होता है दर्शन, यहां काली पात्र के लिए साल भर पहले से शुरु होती है तैयारी

 Maa kali

मां काली के स्वांग स्वरुप

इलाहाबाद. देश भर में धार्मिक मान्यताओं में नवरात्र पावन और पवित्र उत्सवधर्मिता वाला समय माना जाता है । देश भर में अपने स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा के सभी स्वरूपों का श्रृंगार पूजा व्रत और साधना की जाती है। पश्चिम बंगाल कलकत्ता सहित उत्तर भारत में नवरात्र में देवी साधना का विशेष महत्व माना जाता है। देश भर जहां मां के भक्त देवी के दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं। मंदिरों में अनुष्ठान पूजन करते है। वही दुनिया में आस्था की धरती कही जाने वाली संगम नगरी में नवरात्र में देवताओं को जागृत करने वाला माना जाता है।
इनपुट- इलाहाबाद से प्रसून पाण्डेय की रिपोर्ट

संगम तट स्थित मां दुर्गा का स्वरुप खुद भक्तों से मिलने आता है। जानकारों के अनुसार रामायण के एक खास प्रसंग हैं, जिसमें माता सीता के स्वांग के स्वरुप का होता है। जिसे ‘काली स्वांग’ कहते है । इस स्वांग में मां सीता स्वयं काली के स्वरुप में भगवान राम के रथ के आगे भुजाली लेकर चलती है। मां के इस में खर दूषण -वध का स्वांग होता है । कहा जाता है कि भगवान राम को कोई भी दुष्ट आत्मा ना छू सके उनके लिए वो काली स्वरुप में आगे चलती है। शहर के दारागजं में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही रामलीला में यह एक विशेष महत्व वाला दिन माना जाता है। इस दिन हजारों भक्त मां का आशीर्वाद लेने के लिए साथ चलते हैं ।
इन्हें इस बात की परवाह भी नहीं होती की काली पात्र के हाथ में लहराती भुजाली से वो घायल भी हो जाते हैं। ये स्वांग नवरात्र के चौथे दिन से सप्तमी तक आयोजित होता है। जिसका हर साल श्रद्धालु बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। काली स्वरुप की झलक पाने के लिए हजारों लोग दूर दराज से आते हैं। मां को छूने और उनके स्वरुप के दर्शन के लोगों की भारी भीड़ जमा होती है। सप्तमी के दिन यहां काली स्वरूप के दर्शन का बड़ा धार्मिक महत्व है।
दरअसल, ये पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग से जुड़ा है जिसमें सुपर्नखा के नाक-कान कटने के बाद खर-दूषण अपनी सेना को लेकर राम से युद्व के लिए आ पहुंचते हैं। सीता माता खुद काली का वेश धर कर राम के रथ के आगे-आगे चलती हैं और खर-दूषण के वध में अपने पति मर्यादा पुरुषोत्तम राम का साथ देती है।
आयोजकों ने पत्रिका को बताया कि यहां पर इस काली स्वांग की परंपरा 100 साल से ज्यादा पुरानी है । यहां हर साल काली के पात्र के चयन के भी कड़े मापदंड होते हैं। इसमें कालीपात्र बनाने की कुछ खास योग्यताएं होनी जरुरी है। जिन लोगों की इस पात्र में रूचि होती है। उनको कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक और धार्मिक मान्यताओं पर खरा उतरना पड़ता है । इसमें सबसे जरुरी होता है पात्र के लिए साल भर पहले से संयमित ढंग से रहे । कमेटी के लोग उसे चुनते है। जो इन कसौटियों पर खरा होता है । इस स्वांग में लोगों की अटूट आस्था भी है। इस स्वांग में लोग कालिपात्र को मां का रूप मानते हैं । काली स्वांग जैसे-जैसे आगे बढ़ता है । लोगों का हुजूम मां के आशीर्वाद पाने के लिये साथ चलता है । स्वांग पर फूलों की बारिश होती है । जो के इस रूप का दर्शन कर लेता है। वो स्वयं पर आने वाले कष्टों से छुटकारा पाने का संकेत मानता है।
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