बिजनौर के नगीना से समाजवादी पार्टी के विधायक और पूर्व मंत्री मनोज पारस के खिलाफ 13 जून 2007 को गैंगरेप की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। महिला ने आरोप लगाया था कि राशन की दुकान दिलाने के नाम पर विधायक ने उसे आठ दिसंबर 2006 को अपने घर बुलाया और तीन लोगों के साथ मिलकर गैंगरेप किया। विधायक ने धमकी दिया कि अगर किसी के सामने मुंह खोलोगी तो तुम्हे जान से मार दिया जाएगा।
पीड़िता की ओर से दाखिल 156(3) की अर्जी पर मजिस्ट्रेट के आदेश पर साल 2007 में आईपीसी के तहत नगीना थाने में उनके खिलाफ गैंगरेप का मुकदमा दर्ज हुआ। इस मामले में आरोपितों के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया था। हालाँकि बाद में आरोपितों की गिरफ्तारी पर उच्च न्यायालय रोक लगा दी थी। इसके बाद एक जाँच अधिकारी ने आरोपित के ख़िलाफ़ 2011 में हलफनामा दर्ज करवाया था, लेकिन सही प्रक्रिया फॉलो न करने के कारण उसे प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया गया था। इसके बाद ये मामला उस समय सुर्खियों में आया जब दोबारा मनोज को 2012 में सपा से टिकट मिला और साथ ही उन्हें मंत्री भी बनाया गया।
जमानत अर्जी पर बचाव पक्ष का कहना था कि उसे राजनैतिक कारणों से फंसाया गया है। घटना का कोई स्वतंत्र साक्षी नहीं है। उस पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। अदालत ने जमानत प्रार्थनापत्र खारिज करते हुए कहा कि सामूहिक दुष्कर्म की घटना जघन्य एवं पाशविक है। अपराध की गंभीरता को देखते हुए जमानत देने का कोई आधार नहीं है। स्पेशल अदालत के जज पवन तिवारी ने सपा विधायक को जेल भेज दिया।