नारायण दत्त तिवारी 12 जुलाई 1944 को इलाहाबाद आए और सोशलिस्ट पार्टी में सम्मिलित हुए। इसके बाद उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव, राजाराम शास्त्री, अच्युत पटवर्धन और पीटर अल्वा के साथ काम किया। छात्र जीवन में दिग्गजों के साथ काम करने के बावजूद तिवारी पर सबसे ज्यादा प्रभाव आचार्य नरेंद्र देव का रहा। ब्रिटिश शासन काल में जब छात्रसंघ बंद कर दिया गया तो उसकी बहाली की लड़ाई 1942 से शुरू हुई। तब देशभर में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। 1946 में तिवारी सहित अन्य दिग्गज नेताओं के प्रयास के बाद विश्वविद्यालय का छात्र संघ बहाल हुआ। पंडित नेहरू ने छात्रसंघ भवन के उद्घाटन पर तिवारी की पीठ थपथपाते हुए कहा था कि देश उनके साहस को हमेशा याद रखेगा।
एक बुलावे पर जुट जाते थे हजारों लोग 1947 में आजाद भारत के पहले अध्यक्ष के तौर पर तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ भवन में कार्यकाल पूरा किया और राजनीतिक जीवन का सफर शुरू हुआ। तिवारी के अध्यक्ष बनने के बाद नेहरू बतौर देश के पहले प्रधानमंत्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में आए और विश्वविद्यालय को संबोधित किया। तिवारी क्रांतिकारी नेता के रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने कई बड़े आंदोलनों की आगुवाई की। इववि के पूर्व अध्यक्ष अभय अवस्थी बताते हैं कि तब तिवारी के एक आहवान पर हजारों छात्र एकजुट हो जाते थे। तिवारी का इलाहाबाद विवि के छात्रों, छात्रसंघ पदाधिकारियों और शिक्षकों से बेहद लगाव रहा। तिवारी इलाहाबाद के कटरा स्थित दिलकुशा पार्क की पीली कोठी के मकान में रहाते थे। आज भी शहर में उनकी यादें बतौर क्रांतिकारी छात्र नेता मौजूद हैं। उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय याद करता है।