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नौ विदेशी संतों को कुंभ में मिली महामंडलेश्वर की उपाधि, कोई पेशे से मनोवैज्ञानिक था तो कोई रिसर्च स्कॉलर

locationप्रयागराजPublished: Feb 08, 2019 07:20:13 pm

Submitted by:

Akhilesh Tripathi

साई मां के शिष्यों को निर्मोही अखाड़े ने बनाया महामंडलेश्वर, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी भी हुए शामिल

 Foreigner saints became Mahamandaleshwar

विदेशी संत बने महामंडलेश्वर

आलोक पण्ड्या
प्रयागराज. कोई पेशे से मनोवैज्ञानिक था तो इलेक्ट्रिल केमेस्ट्री का रिसर्च स्कालर । कोई फ्रांसिसी है, कोई अमेरिकी तो कोई जापानी है। लेकिन हिंदू धर्म और आध्यात्म की ऐसी लगन लगी कि सबकुछ छोड़कर संन्यासी हो गए। दो दशक से ज्यादा समय तक धर्म की ध्वजा थामे रखने के बाद आखिरकार शुक्रवार को 9 विदेशी संन्यासियों को अखाड़ों की सबसे बड़ी उपाधि महामंडलेश्वर मिल ही गई। प्रयाग कुंभ में निर्मोही अखाड़े में विधि-विधान से विदेशी संन्यासियों को महामंडलेश्वर बनाया गया। इस मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी भी मौजूद थे।
लक्ष्मी देवी साईं मां के हैं शिष्य
शुक्रवार को महामंडलेश्वर की उपाधि पाने वाले ये विदेशी संत साईं मां के शिष्य हैं। लक्ष्मीदेवी साईं मां एक फाउंडेशन चला कर हजारों विदेशियों को हिंदू धर्म से जोड़ रही हैं। निर्मोही अखाड़ेे में महामंडलेश्वर अभिषेक के बाद सभी संन्यासी साईं मां के शिविर में पहुंचे। यहां पर विधि विधान के साथ गुरू पूजन की गई।
किस-किस को मिली महामंडलेश्वर की उपाधि

जयेंद्र दास- फ्रांस, इंजीनियर एवं इलेक्ट्रिकल कैमेस्ट्री के विशेषज्ञ
अनंत दास- अमेरिका (वर्तमान में भारत में), यूएस से स्नातक
श्रीदेवी मां- अमेरिका, सात साल की आयु में महर्षि महेश योगी संस्थान से जुड़ी, वूमन स्टडी से ग्रेज्युएट
परमेश्वर दास- अमेरिका, मनोविज्ञान के विशेषज्ञ
राजेश्वरी मां- जापान, पेशे से जर्मनी, जापानी और अंग्रेजी की शिक्षिका
त्रिवेणी दास- अमेरिका, मनोविज्ञान से स्नातकोत्तर
जीवन दास- अमेरिका, चिकित्सक एवं पर्वतारोही
दयानंद दास- इज़राइल, विज्ञान से स्नातक
त्यागानंद दास- अमेरिका, स्नातक
जीवन का सर्वश्रेष्ठ क्षण- अनंत दास
महामंडलेश्वर पद प्राप्त होने के बाद अनंतदास ने कहा कि यह उनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ क्षण हैं। उन्होंने बताया कि वे यूएस में 21 साल की आयु में कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद साई मां से मिले और अचानक ही आध्यात्म की राह को अपना लिया। उसके बाद से उनके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन हुए हैं और अब से हिंदू धर्म के प्रचार का काम ही कर रहे हैं।
कई देशों धर्म शिक्षण कर चुकी श्रीदेवी मां
श्रीदेवी मां ने बताया कि वे एक शिक्षक के रूप में अमेरिका, भारत, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया, जापान, बालविया में हिंदू धर्म संस्कृति का प्रचार प्रसार कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि वे अपनी मातृभूमि चिली में भी एक आश्रम स्थापित कर चुकी है। अब उनका ध्येय पूरे विश्व में सनातन धर्म का प्रचार करना है।
अखिल भारतीय पंच निर्मोही अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत राजेंद्रदास का कहना है कि हमारी संस्कृति पूरे विश्व का कल्याण चाहती है। इसी से विदेशी भी हमारी सनातन परंपरा से अभिभूत होकर जुड़ रहे हैं। शुक्रवार को नौ विदेशी संन्यासियों का अखाड़े ने महामंडलेश्वर अभिषेक किया है। अब वे विश्व में हिंदू धर्म का प्रचार करेंगे।
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