विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामसेवक दुबे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के रेगुलेशन 2018 का हवाला देते हुए राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में जानकारी दी है कि कुलपति के रूप में प्रोफेसर खेत्रपाल की ओर से की गई नियुक्तियों को इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से निरस्त किया जा चुका है ।इसके साथ ही कोर्ट ने प्रोफेसर खेत्रपाल की कार्यप्रणाली के खिलाफ टिप्पणी करते हुए 50 हजार का अर्थदंड भी लगाया था। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी 2018 की अधिसूचना का जिक्र करते हुए बताया है कि कमेटी में शामिल सदस्य का चयन नियम विरुद्ध है। वह अपने किए पर पर्दा डालने के लिए वर्तमान में विश्वविद्यालय की गतिविधियों से जुड़े रहने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रोफेसर रामसेवक दुबे ने राष्ट्रपति के को भेजे गए पत्र में गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि यदि वह कमेटी में शामिल रहेंगे तो विश्वविद्यालय के कुलपति का चयन निष्पक्ष नहीं हो सकेगा। ऐसे में उन्होंने राष्ट्रपति से 16 मार्च को प्रस्तावित कार्यपरिषद की बैठक में मनोनयन निरस्त करने की मांग की है।
वही प्रोफेसर दुबे के पत्राचार के बाद विश्वविद्यालय में शिक्षकों का खेमा दो हिस्सों में बट गया है। कुछ शिक्षक खेत्रपाल के समर्थन में सामने आ गए हैं। विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय के अधिनियम में स्पष्ट है कि कोई कर्मचारी अथवा किसी कमेटी का सदस्य ना होने वाले कमेटी में शामिल हो सकता है। प्रोफेसर खेत्रपाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं और ना ही किसी कमेटी में शामिल है। ऐसे में उनको कमेटी में शामिल किया जाना कहीं से गलत निर्णय नहीं है। वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि यूजीसी के नियमानुसार ही प्रोफेसर खेत्रपाल का चयन हुआ है।