पितृपक्ष के दौरान इलाहाबाद में तीर्थराज प्रयाग का एक अलग महत्व है। आज पितृ विसर्जन के अवसर पर हजारों की संख्या मंे लोग पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तिलदान व जल पूजन करने संगम तट पहुंचे। ऐसी मान्यता है कि संगम तट पर पिंडदान करने से पूर्वजों की मृत आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही पूर्वज उनके पूजा आराधना से खुश होकर सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं। पिंडदान को अश्वमेधयज्ञ के समान लाभकारी माना गया है। ऐसे में संगम तट पहुंचे लोगों ने संगम तट पहुंच मंुडन करवाया। इसके बाद संगम में डूबकी लगा कर अपने मृत पूर्वजों के लिए खीर, खोए और जौ से पिंडदान किया। विधिवत पूजा आराधना कर पूर्वजों का आशीर्वाद लिया।
यह भी पढ़ें- अर्द्धकुंभ मेला शताब्दी का सबसे बेहतर मेला होगा- उमा भारती इस दौरान उन्होंने सबसे पहले कौवा, गाय, देवता व चींटी के लिए भोजन निकाला। इसके बाद ब्राह्मणो को भोजन कराया और दान किया। इसके साथ ही ब्राह्मणों का आशीर्वाद लिया। यहां आए लोगों ने संगम किनारे बैठे भिखारियों को भी दान देकर पूण्य प्राप्त किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बताया कि पिंड को पूर्वजों के शरीर का प्रतीकात्मक स्वरूप माना जाता है। पिंड की पूजा ही पूर्वजों की पूजा होती है। जो व्यक्ति अपने पूर्वजों को पिंडदान नहीं करता उसे शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, संतान सहित अन्य तरह से काफी कष्ट का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उन्हें अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
by Arun Ranjan