उनकी मांग है कि अन्य पीएचडी धारकों की तरह उन्हें भी केन्द्र और राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों की शिक्षक भर्ती में शामिल किया जाए। उनका यह भी कहना है कि मुक्त विश्वविद्यालय ने पीएचडी की डिग्री यूजीसी के नियमों के तहत ही दी है। शोधार्थियों की डिग्रियों को प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने मुविवि के दीक्षांत समारोह में स्वयं प्रदान किया है। यही नहीं मुविवि ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी और हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई चन्द्रचूड़ के अलावा अन्य कई वैज्ञानिकों को भी मानद उपाधि प्रदान की है। ऐसे में डिग्रियों को मान्यता न देकर यूजीसी और राज्यपाल की अवहेलना की जा रही है।
पीएचडी डिग्री धारकों ने कहा कि इविवि और इससे संबद्ध डिग्री कालेजों की शिक्षक भर्ती में मुविवि की डिग्री को अस्वीकार कर दिया गया। इसकी शिकायत मुविवि के कुलपति से की गयी, लेकिन उनके स्तर से कोई कार्यवाही नहीं की गयी। पीएचडी धारकों ने राज्यपाल और यूजीसी इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। पीएचडी डिग्री धारक डा.आलोक त्रिपाठी का कहना है कि यूजीसी के निर्देश पर पहले दूरस्थ शिक्षा के तहत पीएचडी करायी गयी और जब शिक्षक भर्ती के तहत नौकरी देने की बात आई तो यूजीसी का हवाला देकर ऐसे शोधार्थियों को आवेदन करने से वंचित कर दिया। उनकी मांग है कि उन्हें भी शिक्षक भर्ती में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि यूजीसी के निर्देश पर ही वर्ष 2006 में दूरस्थ शिक्षा के तहत पीएचडी की पढ़ाई शुरू करायी गयी थी। ऐसे में हजारों की संख्या में छात्रों ने पीएचडी की पढ़ाई पूरी कर ली।
By- Prasoon Pandey