अतीक ने बढाया रोमांच
गौरतलब है कि प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई फूलपुर सीट पर उपचुनाव हुआ। पूर्वोत्तर में भाजपा की जीत ने भाजपाईयों का उत्साह बढ़ाया। तो इसी बीच बसपा ने सियासी पैतरा खेला और सपा को समर्थन देकर चुनावी समीकरण को थोड़ा उलझाने की कोशिश की, लेकिन फूलपुर से ही सपा के टिकट से सांसद रहे अतीक अहमद की उम्मीदवारी और जेल के अंदर से ही उनकी सक्रियता ने सपा.बसपा के गठबंधन में पलीता लगा दिया।
कभी कांग्रेस का था गढ़
वैसे फूलपुर लोकसभा सीट भाजपा के कभी अनुकूल नहीं रही। आजादी के बाद से यह सीट कांग्रेस की गढ़ मानी जाती रही। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु यहां से चुनाव जीतते थे। बाद में इस सीट पर सपा का कब्जा होने लगा। बसपा के कपिल मुनि करवरिया भी 2009 में इस क्षेत्र से सांसद चुने गए थे। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने 2014 में पहली बार फूलपुर सीट पर कमल खिलाया था। बता दें की परिसीमन के बाद फूलपुर सीट से हंडिया और प्रतापपुर विधानसभा क्षेत्र भदोही लोकसभा सीट में सम्मिलित कर दिये गये, और इसके बदले शहर उत्तरी और शहर पश्चिमी फूलपुर में मिला दिये गये। इससे फूलपुर सीट काफी हद तक भाजपा के अनुकूल हो गयी।
भाजपा के गढ़ में नही पड़ा वोट
शहर उत्तरी के चलते फूलपुर संसदीय क्षेत्र में युवा मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। इन युवाओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक हावी दिखता रहा। लेकिन उपचुनाव में उत्तरी के मतदाता दगा दे गये। लेकिन यहाँ मुस्लिम मतदाताओं ने अच्छा वोट किया।जिन पर अतीक अहमद का खास प्रभाव है। ऐसे में अतीक की उम्मीदवारी ने इस उपचुनाव को काफी रोचक बना दिया है।फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 1963543 है। इसमें पटेल मुसलमान और दलित वोटर ब्राह्मण और यादव मतदाता है । जिसके लिये सभी प्रत्याशी हर वर्ग के वोट अपने खाते में होने का दावा कर रहे हैं।
भाजपा मैजिक और सपा बसपा के सहारे
फूलपुर भाजपा मोदी और योगी के मैजिक के सहारे फिर दिखी तो सपा अपने परंपरागत वोटो के अलावा बसपा के सहारे है। हालांकिए बसपा कार्यकर्ताओं में जोश नदारद है।वरिष्ठ पत्रकार पीएन दिवेदी लम्बे समय से देश व प्रदेश की सियासत को करीब से देखते आ रहे है उन्होंने कहा की भाजपा जो इस गठबन्धन को मजबूत नही मान रहा 25 साल पहले सपा .बसपा में हुए गठबंधन के अनुभवों को बताया जा रहा है। दरअसल 1993 में सपा और बसपा ने एक साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और बहुमत मिलने पर प्रदेश में सपा और बसपा की साझे की सरकार बनी थी। लेकिन दो साल बाद ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती में कुछ अनबन हो गयी तो मायावती ने अपना समर्थन वापस ले लिया और मुलायम की कुर्सी चली गयी थी।
गेस्ट हॉउस कांड ने बढाई दुरी
गठबंधन टूटने के बाद लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में बड़ा बवाल हुआ। सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती पर हमला किया था। फिर दोनों दल एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गये थे। हालांकि पिछले वर्ष विधानसभा चुनाव के दौरान सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बसपा से दोबारा गठबंधन के लिए कई बार इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन मायावती ने स्पष्ट इनकार कर दिया था। अब जब फूलपुर और गोरखपुर का उपचुनाव के मौके पर भाजपा को शिकस्त देने के लिए दोनों दलों ने एक बार फिर हाथ मिलाया है। लेकिन राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि चुनावी फायदे के लिए सपा और बसपा ने भले ही समझौता किया है लेकिनए दोनों दलों के जमीनी नेताओं का दिल आपस में एक नहीं हो सकता है।