नेहरू के गढ़ में सफल हो रहा पीएम मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त’ अभियान
प्रयागराजPublished: Aug 25, 2016 01:35:00 pm
फूलपुर कभी था कांग्रेस का चुनावी गढ़, फूलपुर ने दिए देश को दो प्रधानमंत्री
इलाहाबाद. फूलपुर संसदीय क्षेत्र कभी कांग्रेस का चुनावी गढ़ था। इसी संसदीय क्षेत्र ने देश को दो प्रधानमंत्री दिए। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का गढ़ कहा जाने वाला कांग्रेस का यह किला आज पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। इसके ध्वस्थ होते ही बीएसपी, बीजेपी से लेकर सपा तक अपना विजय पताखा फहरा चुके हैं। फूलपुर का यह लोकसभा और विधानसभा का क्षेत्र दो प्रधानमंत्री देने के बावजूद विकास की तलाश में दम तोड़ता नजर आ रहा है।
इलाहाबाद से भले ही पंडित जवाहर लाल नेहरू का रिश्ता घर का रहा है। लेकिन जब बात चुनावी मैदान चुनने की आई तो उन्होंने आनंद भवन से चंद दूरी पर स्थित फूलपुर संसदीय क्षेत्र को ही चुना। पंडित नेहरू के बाद विजया लक्ष्मी पंडित को यह विरासत के रूप में मिली। ये दोनों प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस की इस सरजमी को बसपा संस्थापक कांशीराम ने भी चुना लेकिन फूलपुर की आबोहवा ने उन्हें ठहरने नहीं दिया।
इनके अलावा कई अन्य दिग्गजों ने अपना चुनावी मैदान बनाने का प्रयास किया, लेकिन कुछ सफल हुए तो कुछ धरासायी। कांग्रेस के बाद सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, लोकदल के बाद फिर एक पंचवर्षीय कांग्रेस ने फतह किया। उसके बाद जनता दल, सपा, बीएसपी, बीजेपी सफलता हासिल की। आज कांग्रेस को इस सियासी जमीन को पाने के लिए नाको चने चबाने पड़ रहे हैं। सियातस की यह जमीन लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव के लिए भी काफी उलटफेर वाली रही है।
यह सीट जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही कांटो भरी है। फूलपुर विधानसभा क्षेत्र पटेल बाहुल क्षेत्र हैं। पटेल वोटरों का रिझाने के लिए ही विभिन्न राजनैतिक दल यहीं से अपना चुनावी बिगुल फूंक रहे हैं। बीजपी ने तो फूलपुर की इसी धरती से इलाहाबाद के 12 विधानसभा सीटों कब्जा जमाने का दावा किया है। साथ ही आने वाले विधानसभा चुनाव में कमल खिलाने का भी दम्भ भर रही है।
यहां तक की पटेल वोटरों पर कब्जा जमाने के लिए ही यहां के सांसद केशव प्रसाद मौर्या को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। वहीं अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय मंत्रालय में जगह देकर बीजेपी ने यूपी चुनाव को लेकर अपने मंसूबे साफ कर दिए हैं। साथ ही दलित व पटेल वोटरों को रिझाने के लिए ही बीजेपी ने बीएसपी का दामन छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या के लिए पार्टी का दरवाजा खोल दिया है। वहीं अन्य पार्टियों ने भी फूलपुर विधानसभा क्षेत्र से ही अपनी सियासत शुरू कर दी है।
2012 में सपा ने दी थी बसपा को पटखनी
यूपी विधानसभा चुनाव 2012 में फूलपुर के चुनावी मैदान में सपा और बसपा के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में 308465 मतदाताओं को रिझाने के लिए सभी पार्टियों ने एडीचोटी लगा दी थी। बीजेपी ने प्रतापपुर के तत्कालिन विधायक जोखू लाल यादव को मैदान में उतारा था। सपा ने सईद अहमद को तो बसपा ने प्रवीण पटेल को टिकट दिया था। वहीं काग्रेस ने हाजी माशूक खां को टिकट दिया। संघर्षपूर्ण इस चुनावी मैदान में सपा के सईद अहमद ने 72898 वोट प्राप्त कर बीएसपी के प्रवीण पटेल को पटखनी दी। बसपा प्रत्याशी प्रवीण पटेल को 64998 वोट मिले थे।
केशव की धरती पर किसका होगा तिलक
बीजेपी सांसद केशव प्रसाद मौर्या वर्तमान में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। सांसद केशव पर इस 2017 के विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ी जिम्मेदारियां हैं। यूपी ही नहीं बल्कि यूपी के इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों को भी बचाने का दबाव है। क्योंकि यहां की सीटें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की शान हैं। ऐसे में अगर केशव के किले में ही सेंधमारी हुई, तो केशव के साथ पार्टी को भी गहरा धक्का लगेगा। वैसे भी सियासत के मैदान में ये 12 सीटें बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
दम तोड़ता फूलपुर
फूलपुर की इस सियासी सरजमी पर कांग्रेस ने करीब तीन दशक तक शासन किया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1952 से 27 मई 1964 (मृत्यु पूर्व तक), विजया लक्ष्मी पंडित ने 1965 से 1969, विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1971 से 19777 तक फिर रामपूजन पटेल 1984 से 1989 तक सांसद कांग्रेस से सांसद रहे। फिर रामपूजन पटेल 1989 में जनता दल से सांसद चुने गए बाद में कांग्रेस में आ गए। पंडित नेहरू ने अपने संसदीय क्षेत्र में तहसील मुख्यालय पर औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना करवाई थी। जो बीस सालों में ही दम तोड़ता नजर आया। 1974 में तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फूलपुर में ही इफ्को कारखाने की आधारशिला रखी। जो आज अपना वजूद खो चुकी है। कांग्रेस का गढ़ कहा जाने वाला यह क्षेत्र आज काफी पिछड़ा है। विकास यहां से काफी दूर है। कामागर रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं।