याची के मामले में पुलिस ने मजिस्ट्रेट की अनुमति नहीं ली है। इसलिए पुलिस की विवेचना कानूनी प्राधिकार के विपरीत याची का उत्पीड़न है । जिसे रोका जाय। कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता के उपबंधो के हवाले से याची के तर्कों को अमान्य कर दिया और कहा कानून में पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध की विवेचना जारी रखने पर कोर्ट अवरोध नहीं है।
पुलिस अपने आप अपराध की विवेचना जारी रख सकती है। मौखिक या दस्तावेजी सबूत मिलने की स्थिति में वह पूरक आरोपपत्र दाखिल कर सकती हैं। मालूम हो कि 9 मार्च 19 की रात शिकायत कर्ता भतीजे की बारात में गया था। जैसे ही वह रात ढाई बजे विश्राम करने कमरे में गया,एक लड़का पहले से मौजूद था। अचानक दौड़ा और याची का बैग लेकर भागा।बाहर साथी की मोटरसाइकिल पर सवार होकर भाग गया।
बैग में 1.4 लाख नकद व सोने चांदी के जेवर व मोबाइल फोन था। पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। कोर्ट ने उसपर संज्ञान भी ले लिया। एक अभियुक्त के पिता ने बयान दिया कि उसके बेटे से जेवर बेच दिये है। याची की दूकान से जेवरात बरामद किए गए।और पुलिस ने स्वयं विवेचना शुरू की।जिसकी वैधता को चुनौती दी गई थी।